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केदारघाटी के हर बाशिंदे से विशाल चण्डिका कौथिग के लिए ये ख़ास अपील….जानिये सब कुछ

देवभूमि उत्तराखंड की केदारघाटी में भगवती चण्डिका ऊषामठ (ऊखीमठ) की मुख्य अधिष्ठात्री है जो भगवान शिव की अर्धांगिनी भी हैं। ऊषामठ में पूर्व समय में शारदीय नवरात्रि को चण्डिका कौथिग का आयोजन होता था किंतु कुछ वर्षों लगभग 45 से 50 सालों से यह परम्परा पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुकी है। जबकि पूर्व समय में शारदीय नवरात्रि के उपलक्ष पर देवी का नौ दिनों का अनुष्ठान एवं चण्डिका फर्श नृत्य आयोजित होता था।

आपको बता दें परम्परानुसार 5 थोकी थोकदारों की अध्यक्षता (जिनके अधीन देवालय के हकूक) जैंसे मालकोटी के बर्तवाल, ऊषामठ व मणिगुह बसे कांसुआ के कुँवर, चांजी (घनसाली) से भटवाड़ी बसे रावत, डालसिंगी व परकंडी के भण्डारी और भणज के रावतों को मिलकर ऊषामठ पँचगांई को साथ लेकर ऊषामठ पँचगांई की भक्तवत्सल जनता के सहयोग से विशाल चण्डिका कौथिग आयोजित किया जाता था। यह कौथिग आदिकाल से चलता आ रहा था और उस समय जब यह ऊषामठ मन्दिर केदार रावल व थोकदारों के अधीन था तबसे भी यह परम्परा लगातार चलती आ रही थी किन्तु 45 वर्ष पूर्व से यह परम्परा नष्ट हो चुकी है।

मेरा सभी थोकदार बंधुओं एवं ऊषामठ पँचगांई के हकूकधारियों से निवेदन है कि इस ऐतिहासिक परम्परा को पूर्व समय की भांति वर्तमान समय में भी आगामी नवरात्रों में वृहद स्तर पर आयोजित किया जाएगा जिसमें समस्त ऊषामठ पँचगांई (पँचकोटी) की जनता और देवी चण्डिका के मैती ग्रामवासियों, पंच थोकी थोकदारों (बर्तवाल, कुँवर, भण्डारी, रावत, जग्गी नेगी) से निवेदन है कि इस वर्ष शारदीय नवरात्रि में हम सभी मिलकर वृहद स्तर पर ऊषामठ में चण्डिका नृत्य का आयोजन करवाएं।

ऊषामठ स्थित विभिन्न ग्रामों के माँ चण्डिका के फर्श के नाम व जानकारी–

मालकोटी से लेकर फरासू तक के चण्डिका फर्शों की आदिकाल से ऊखीमठ में पूजा होती आ रही है और इतने फर्शों के दर्शन एक साथ उत्तराखण्ड के किसी और मन्दिर में नहीं होते हैं। ऊखीमठ में भगवती चण्डिका के 6 फर्श हैं जिनमें से 4 कोठेभवन एवं 2 धवल पर्वत में पूजित हैं इन 6 फर्शों में–

1:- मालकोटी की रक्तदन्तिका चण्डिका:- यह मालकोटी, मयकोटी, बमोली, कर्णधार, कुमोली, डांगी-गुनौ एवं बरसिल की चण्डिका है इनके थोकदार मालकोटी के बर्त्वाल थोकदार बंधु एवं आचार्य मयकोटी के वशिष्ट आचार्य हैं  और इसका नाम रक्तदन्तिका है।

2:- मणिगुह की क्वांरीका चण्डिका :- यह मणिगुह, भटवाड़ी, खाली, खमोली, मालखी एवं बड़ेथ की चण्डिका है और इनके मुख्य मैती मणिगुह के राणा लोग हैं जिनके यहाँ मां चण्डिका (क्वांरीका) की शक्ति मूर्ति पूजा होती है यही इनके मुख्य मैती हैं जो माता की बन्याथ करवाने का मुख्य कार्य एवं जिम्मेदारी लेते हैं इनके सहायक थोकदार कुँवर बंधु हैं।  इनके आचार्य भटवाड़ी के भट्ट आचार्य हैं और  इसका नाम कन्या स्वरूप होने से क्वांरिका है ऊषामठ पक्ष से इनके थोकदार आल्यूं (पोखरी) के बर्तवाल व ऊषामठ बसे कांसुआ के कुँवर हैं।

3:- फापंज की उग्रदंष्ट्रा चण्डिका :- यह पाली, फापंज, बरसाल की चण्डिका है इनके मैती नेगी लोग हैं तथा ससुराल पक्ष से इसके मुख्य थोकदार ऊषामठ बसे कांसुआ के कुँवर भड़वाडी ग्राम के रावत थोकदार हैं जो कि ग्यारह गौं हिंदाव के चांजी ग्राम से ऊषामठ से यहां बसे हैं और दिकोला रावत हैं यही चक्रभेदन एवं भोग माँ चण्डिका को लगाते हैं। इसके आचार्य मक्कू के मैठाणी आचार्य हैं।

4:- करोखी की करुणाक्षी चण्डिका :- यह करोखी की चण्डिका हैं इसके मैती करोखी के रावत, सारी के नेगी व उषाडा के बजवाल लोग हैं तथा ससुराल पक्ष ऊषामठ से कांसुआ के कुँवर थोकदार हैं। इसके आचार्य मक्कू के मैठाणी और परकंडी सिरवा के सेमवाल लोग हैं।

5:- ऊखीमठ की धौलागिरी चण्डिका :- पँचगाँई ऊखीमठ तथा स्यूर, कूड़ी, अदुली, डांगी, सिनघाटा, कोटी एवं डड़ोली व बड़मा पट्टी की चण्डिका है। मैती पक्ष से इनके थोकदार स्यूर के महरा नेगी, कूड़ी अदुली के कपरूवाल नेगी तथा रावत एवं पंवार लोग, डांगी के राणा तथा नेगी, सिनघाटा के नगरकोटी नेगी तथा डड़ोली से नेगी लोग तथा कोटी ग्राम से म्योड, मलांश एवं जग्गी नेगी, डंगवालगाँव के रावत, धारियांज रौथाण, डोबल्या चव्हाण, परकंडी के भण्डारी इनके थोकदार हैं। ससुराल पक्ष से इनके मुख्य थोकदार ऊखीमठ और मणिगुह के राजवंशी कुँवर थोकदार हैं जो कि कांसुआ से यहां बसे हुए कुँवर हैं। तथा मालकोटी के बर्त्वाल बंधु हैं जो इनको भोग लगाने का कार्य करते हैं। इनके आचार्य टेमरिया के सेमवाल (जो राजवंशी कुंवरों द्वारा कांसुआ सेम से लाये गए ), खोन्नू के भट्ट, कविल्ठा के भट्ट एवं गौड़, रविग्राम के जमलोकी एवं देवशाल के देवशाली तथा नारायणबगड़ थराली के सती तथा बीरों के डिमरी इनके आचार्य हैं।

6:- फरासू की रत्नेश्वरी चण्डिका :- यह फर्श श्रीनगर के फरासू, गण्डासु, मँगासु, स्वीत, चमधार, ओडला, डुंगरीपन्त, सेम आदि 12 गांवों का है जो आदिकाल से ऊषामठ में पूजित है सम्वत 1872 में इसकी बन्याथ इन 12 ग्रामों द्वारा आयोजित हुई थी जो कि अभी तक पुनः नहीं हो पाई है, इसका फर्श भी धवलगिरी में पूजित है ऊषामठ पक्ष से इसके थोकदार ऊषामठ बसे कांसुआ के कुँवर हैं।

नोट: सारी जानकारी ‘रूद्रप्रयाग “कोटेश्वर” दर्शन’ पेज से ली गयी है।


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