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जानिये देवभूमि की श्यामा चौहान का ‘गुलाब गैंग’, 100 महिलाओं को भी दे रहीं रोजगार

आपने गुलाब गैंग के बारे में जरुर सुना होगा अगर नहीं सुना है तो हम आपको यहाँ बता देते हैं कि आखिर गुलाब गैंग है क्या? बुंदेलखंड की महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं से प्रेरित है। बुंदेलखंड के बांदा जिले के गुलाबी गैंग ने महिला सशक्‍तीकरण के चलते दुनिया भर के शोधकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित किया है। दरअसल, एक समय ऐसा भी था जब यहां महिलाओं के खिलाफ अत्‍याचार चरम पर थे। उस वक्‍त यहां 12 वर्ष की उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। खुद संपत पाल जो इस गैंग की प्रमुख हैं ने 13 साल में अपने पहले बच्‍चे को जन्‍म दिया। वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए सब्जियां बेचा करती थीं. बाद में वो ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता बन गईं।

संपत पाल पीडीएस सिस्‍टम में फैले भ्रष्‍टाचार से तंग आ चुकीं थीं और अप्रैल 2006 में उन्‍होंने कुछ महिलाओं के साथ जमाखोरों के घर पर छापेमारी की। उन्‍होंने भ्रष्‍ट सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियान के समर्थन में अपने साथ कुछ पुरुषों को भी लिया। कानून हाथ में लेने के आरोप में उन्‍हें साल 2010 में मायावती के शासन में गिरफ्तार भी किया गया। बाद में इसी नाम पर माधुरी दीक्षित और जूही चांवला के अभिनीत एक फिल्म भी आयी थी। देवभूमि उत्तराखंड में भी श्यामा चौहान नाम की एक महिला है जो फिल्म ‘गुलाब गैंग’ में अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के अभिनय से  खासा प्रभावित किया है। लिहाजा, ‘गुलाब गैंग’ की तर्ज पर ही अपने संगठन को सशक्त बनाना चाहती हैं।

अब जानते हैं आखिर कौन हैं श्यामा चौहान? श्यामा का संपन्न परिवार था जो देहरादून के विकासनगर में रहता था, घर-मकान था और पति त्रिलोक सिंह की भी ऑटो स्पेयर पाट्र्स की दुकान थी। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन परिचित ने ही धोखाधड़ी से मकान बिकवा दिया। जिसके कारण पूरा परिवार तंगहाल हो गया था। इसके बावजूद श्यामा ने हालात का मजबूती से मुकाबला करते हुए न केवल सामाजिक बंदिशों को तोड़ा, बल्कि खुद सफलता का मुकाम छूने के साथ ही आज 100 से अधिक महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं।

श्यामा ब्लॉक मुख्यालय विकासनगर गईं, जहां अधिकारियों ने उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) को नए सिरे से संगठित करने की सलाह दी। इसके बाद श्यामा ने ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान से जूट बैग और फाइल फोल्डर बनाने का प्रशिक्षण लिया। फिर स्वयं सहायता समूह में छह महिलाओं को जोड़कर इस दिशा में काम शुरू किया। इसके लिए उन्होंने 25 हजार रुपये का लोन भी लिया। धीरे-धीरे महिलाएं समूह से जुड़ने लगीं और देखते ही देखते उनके साथ अनेक महिलायें जुडती चली गयी। आज यह समूह जूट बैग, फाइल फोल्डर, नो प्लास्टिक बैग, टेक होम राशन आदि से 15 लाख रुपये महीने का कारोबार कर रहा है। वर्तमान में 100 से अधिक महिलाएं इस समूह से जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं को हर महीने पांच हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक की आय हो रही है।


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