दुनियां की सबसे पवित्र यात्रा यानी अमरनाथ यात्रा आज 2जुलाई से शुरू हो चुकी है और यह यात्रा 15 अगस्त तक चलती रहेगी, वैसे तो कश्मीर धरती का स्वर्ग कहलाता है, लेकिन भारतीय जनमानस स्वर्ग को नहीं पाना चाहता बल्कि वो तो इस भोतिक संसार में रहकर ही स्वर्ग के सौंदर्य को निहारना चाहता है तो इस मामले में अमरनाथ से बढ़ा कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता है। यह केवल श्रद्धा की यात्रा ही नहीं बल्कि भक्ति, ज्ञान और कर्म को सार्थक करने वाली यात्रा भी है हिन्दू धर्म में इस यात्रा का काफी महत्व है माना जाता है कि इस यात्रा को जो लोग करते हैं उन्हें 23 तीर्थों का पुण्य मिलता है।
पुराणों में मान्यता है कि जब पार्वती ने शिव से अमर कथा सुननी चाही तो भगवान शिव चाहते थे कि कि ये कहानी ऐसी जगह सुनाई जाए जहाँ कोई और न हो इसलिये उन्होंने इस स्थान को चुना, जब भगवान शिव और पार्वती इस स्थान के लिए जा रहे थे तो उन्होंने जाते-जाते रास्ते में अपना बैल नंदी, अपना सर्प, अपना चांद, गंगा और पुत्र गणेश समेत सब कुछ त्याग दिया और साथ ही उन्होंने पंचतत्वों का भी त्याग यहाँ आते-आते कर दिया था। भगवान शिव और मां पार्वती जब अमरनाथ गुफा पहुंचे तो उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि यहाँ कोई और न हो लेकिन फिर भी वहां एक पक्षी (शुक) मौजूद था उसके बाद शिव ने पार्वती को अमरत्व की था सुनाना शुरू किया, और उन्होंने माँ पार्वती से ये भी कहा कि वो बीच-बीच में हुंकार भी भरती रहें जिससे वो पूरी कथा सुनाते रहें लेकिन बीच में माँ पार्वती को नींद आ गयी थी लेकिन शुक पक्षी हुंकार भरता रहा उसके बाद थोड़ी देर में शिव को अंदाजा हो गया कि कोई और हुंकार दे रहा है।
उसके बाद शिव उस पक्षी को मारने के लिए उसके पीछे भागे लेकिन क्यूंकि अब वो पक्षी बहुत ज्ञानी हो गया था तो वो माया के बल पर व्यास जी की पत्नी के गर्भ में चला गया और 12 साल तक जब उसका जन्म नहीं हुआ तो भगवान विष्णु ने उन्हें बाहर आने को कहा इसके बाद वह पक्षी शुकदेव के रूप में पैदा हुए और सन्यासी बन गये। जब भी लोग अमरनाथ यात्रा करते हैं वहां एक कबूतरों का जोड़ा देखने को मिल जाता है और माना जाता है कि ये वही शुक पक्षी है जो अमर हो चुका है यहाँ हैरानी की बात ये है कि दूर-दूर तक बर्फ और ठंड का मौसम होता है जहाँ कोई पशु-पक्षी नहीं होता है लेकिन ये जोड़ा वहां अक्सर देखने को मिल जाता है।
वैसे इस स्थान से जुड़ी कुछ अन्य कथाएं भी है जो लोग यहां सुनाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह स्थान प्रलय में जलमग्न हो गया था, तब कश्यप ऋषि ने इसका उद्धार किया और भृगु ऋषि ने सबसे पहले बर्फानी बाबा के दर्शन किए। वहीँ एक दूसरी कहानी एक मुस्लिम गड़रिये की भी है,और माना जाता है कि उसी ने इस स्थान की खोज की थी इसलिए आज भी उसके वंशजों को यहां के चढ़ावे का एक हिस्सा मिलता है।