अगर आप कभी केदारनाथ गए है तो आपने अगस्त्यमुनि से थोड़ी दूर सोडी नामक स्थान पर यह विशालकाय पत्थर जरुर देखा होगा! यह विशाल पत्थर उत्तराखण्ड के जिले रुद्रप्रयाग से 23 किमी दूर अगस्त्यमुनि बेडूबगड ग्राम हाट सौडी के मध्य अविरल प्रवाहमान मन्दाकिनी नदी के बीचों बीच महाभारत काल से विराजमान है। बहुत कम लोगों को पता होगा इस विशालकाय पत्थर के रहस्य के बारे में, चलो आज हम आपको बताते है कहते हैं कि जब आखिरी समय में पाण्डव स्वर्ग जाने के लिए केदारधाम जा रहे थे तो इसी स्थान पर भीम के हाथ से सत्तू ( जौ आदि का मोटा आटा) का गोला गिरकर मन्दाकिनी नदी में गिर गया और दो भागों में टूटकर पत्थर का रूप धारण कर लिया। तभी से इस पत्थर का नाम सत्तूढिण्ढा( सत्तू का पत्थर) पडा।
इसकी ऊपरी सतह पर चिनाई के अवशेष अभी भी दृष्टिगोचर होते हैं। पत्थर के बीच में जो दरार पडी है उसी दरार से पत्थर की चोटी तक जाया जाता है। गांव की महिलाएं पत्थर की चोटी पर उगी घास काटने के लिए इसी दरार के रास्ते जाती हैं। कुछ गढवाली फिल्मों में भी इस पौराणिक पत्थर का फिल्मांकन किया गया है। मान्यता है कि इस पत्थर को स्पर्श करने अथवा दूर से भी इसके दर्शन मात्र से मनोकामना पूरी हो जाती है। अत:सभी धर्म में आस्था रखने वाले लोगों से अनुरोध है कि आप जीवन में एक बार इस पौराणिक एवं मनोकामना पूर्ण करने वाले दिव्य पाषाण का दर्शन अवश्य करें।
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