आज हम सब उत्तराखंड के रहने वाले लोग इस बात पर बड़ा गर्व करते हैं कि भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी उत्तराखंड के हैं, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी उत्तराखंड के हैं, भारतीय सेना के श्री बिपिन रावत भी उत्तराखंड के हैं, खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ अनिल कुमार धस्माना उत्तराखंड के हैं और भी न जाने कितने महत्वपूर्ण पदों पर पूरे देश में पहाड़ के लोग बेठे हुए हैं और इन सभी बातों से हमारा सीना हर दिन फूला हुआ रहता है, पर जब बात अब से 20-30 साल बाद की होगी तो कोई भी ये कहने वाला नहीं बचेगा कि फलाना आदमी पहाड़ का है और आज उस पद पर है और इसका सबसे बड़ा कारण है पलायन।
एक ताजा रिपोर्ट के आंकड़े वाकई हैरान करने वाले हैं जिसके अनुसार पिछले 17 सालों में उत्तरखंड से 32 लाख लोग पलायन कर चुके हैं और ये रिपोर्ट सच भी प्रतीत होती है। क्यूंकि आज आप पहाड़ के किसी भी गाँव में चले जाए वहां लगभग आधे घरों में ताला लगा मिलेगा और अगर आप अगल बगल में पता करेंगे तो वो बताएँगे कि ये परिवार अपने गाँव को छोड़कर देहरादून या दिल्ली चला गया है। यहाँ तो हम आधे खाली गांवों की बात कर रहे हैं वहीँ दूसरी ओर उत्तराखंड के लगभग 3000 गाँव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं जबकि पूरे उत्तराखंड में कुल गांवों की संख्या है लगभग 16,793 और आज भी 5000 गाँव ऐसे हैं जहाँ आज तक सड़क नहीं पहुँच पायी है।
आज उत्तराखंड अपनी उम्र के 18 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है यानी युवा हो चुका है और अब इस उत्तराखंड को चाहिए कि वो अपनी युवाअवस्था में ही अपने पहाड़ में भी रोटी पा सके उसे इसके लिए देहरादून, दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों का रुख न करना पड़े वरना अगर ये 18 वर्ष का युवा उत्तराखंड बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं और शिक्षा का दंस यूँ ही सहता रहा तो जो पहाड़ों में आधी जनसंख्या बची हुई है वो भी नहीं मिलने वाली। अगर आज इस समय इस समस्या का सबसे बड़ा जिम्मेदार है तो वो है यहाँ की सरकार, प्रदेश के लोगों ने मुज्जफरनगर काण्ड में इसलिए गोली नहीं खायी थी कि इस प्रदेश का आने वाले समय में नेता बेडागर्क कर जायेंगे बल्कि वो तो इसलिए सीने पर गोली खा रहा था कि अलग उत्तराखंड राज्य बनने से पहाड़ का विकास होगा वहां मूलभूत सुविधायें मिलेगीं पर आज तो स्थिति और भी विकट हो चुकी है। प्रदेश के नेताओं ने सिर्फ अपनी जेबें गर्म की उम्र के 18वें पायदान में ही राज्य ने विकास के नाम पर 8 मुख्यमंत्री देख लिए, लेकिन इन वर्षों के दौरान पलायन कई गुना बढ़ गया और आज स्थिति इतनी भयावह है कि आज राज्य में 2.85 लाख घरों में ताले लटके हैं।
उत्तराखंड सरकार के आंकड़ों के अनुसार भी राज्य गठन से अब तक 70 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर बन गई है। गैर-सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो बंजर कृषि भूमि का रकबा एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा हो गया है। पलायन की तीव्र रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई पहाड़ी गाँवों में युवा मतदाता ही नहीं है, वोट करने वाले सभी लोग 60 वर्ष की आयु से ऊपर के हैं। काश कोई ऐसा हो जो इस पीड़ा की जड़ को समझ सके और इसके पूर्ण रूप से निवारण के लिए काम कर सके वरना आने वाला वक्त हम पहाड़ियों का नहीं होने वाला है और न ही आज की तरह हमें अपना सीना चौड़ा करने का कोई मौका मिलने वाला है।