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उत्तराखंड में एक ऐसा मंदिर जहां हर साल राष्ट्रपति भवन से भेंट किया जाता है नमक, जानिए रहस्य

महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में त्यूनी-मोरी रोड़ के नजदीक व चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। यह मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर और मसूरी से 156 किलोमीटर दूर स्थित हैं। हनोल में स्थित महासू देवता मंदिर के बारे में दिलचस्प बात यह है कि यहां  हर साल दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट स्वरूप आता है। महासू देवता मंदिर उत्तराखंड की प्रकृति की गोद में बसा एक पौराणिक व प्रसिद्ध मंदिर हैं। मान्यता है कि महासू देवता मंदिर में जो भी कोई भक्त सच्चे मन से कुछ भी मांगता है तो महासू देवता उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं। आगे पढ़ें

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महासू देवता मंदिर में महासू देवता की पूजा की जाती हैं, जो कि शिवशंकर भगवान के अवतार माने जाते हैं। ‘महासू देवता’ एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द ’महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं। महासू देवता के मंदिर के गर्भ गृह में भक्तों का जाना मना है। केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। यह बात आज भी रहस्य है। कि मंदिर में हमेशा एक अखंड ज्योति जलती रहती है जो कई वर्षों से जल रही है। मंदिर के गर्भ गृह में पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है यह अभी तक अज्ञात है। मंदिर में महासू देवता के नाम का भी गूढ़ अर्थ है। मान्यता है कि महासू का मतलब है- महाशिव, जो अपभ्रंश होकर महासू हो गया।

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न्याय के देवता महासू की कीर्ति सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह दूर-दूर तक फैली है। न्याय के देवता और उनके न्यायालय का सीधा कनेक्शन दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से भी है। Mahasu devta के इस न्यायालय में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन की ओर से हर साल न्याय के देवता महासू को नमक भेंट किया जाता है। माना जाता है कि एक बार महासू देवता का डोरिया (प्रतीक चिह्न) टोंस नदी में गिर गया जो बहते-बहते यमुना नदी के साथ दिल्ली पहुंचा। वहां ये डोरिया किसी मछुआरे को मिला जिसने इसे डोरिए के राजा को दे दिया। राजा इस डोरीए का इस्तेमाल नमक रखने के लिए करने लगा। समय बीता राजा के साथ अनहोनियां होने लगी।जिसके बाद राज पुरोहितों ने राजा को इसका कारण महासू देवता का रुष्ट होना बताया। राजा ने तुरंत अपने कृत के लिए महासू देवता से माफी मांगी और इस दोष के निवारण तथा महासू देवता को खुश करने के लिए राजा के दरबार से हर साल महासू देवता को नमक भेंट किया जाने लगा। जो समय के साथ रीत बन गई और आज के आधुनिक दौर में भी राष्ट्रपति भवन इस रीत को निभा रहा है।


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