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देवभूमि उत्तराखंड के कुछ ऐशे गाँव जिनके लिए ट्रेन और मोबाइल किसी अजूबे से कम नहीं

थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है… कागजी प्रतिमानों के उलट, जमीनी हकीकत जरूरत पर जोर देती आई है। अब भी दे रही है। जरूरत है समग्र विकास की। जिसकी जद  में सुदूर गांवों भी हों। उत्तराखंड के सर-बडियार पट्टी के आठ गांवों और झारखंड के जरकी गांव को भी विकास का इंतजार है। 21वीं सदी के भारत के इन ग्रामीण बाशिंदों के लिए ट्रेन और मोबाइल जैसी सुविधाएं आज भी किसी अजूबे से कम नहीं।

भारत-चीन सीमा से लगे उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की सर-बडियार पट्टी के आठ गांव आज भी सड़क और संचार सुविधा से पूरी तरह कटे हुए हैं। दोटूक कहें तो इन गांवों तक पहुंचने वाले पैदल रास्ते भी चलने लायक नहीं हैं। इतना ही नहीं, आलम तो ये है कि करीब 12,500 की आबादी वाले सर-बाडियार क्षेत्र के बाशिंदों के लिए तो मोबाइल भी अजूबा है।

पुरोला तहसील की सर-बडियार पट्टी में सर, पौंटी, डिंगाड़ी, लेवटाड़ी, छानिका, गोल, किमडार व कस्लौं गांव पड़ते हैं। तहसील मुख्यालय पुरोला से  इन गांवों तक पहुंचने के लिए 18 किमी से अधिक पैदल चलना पड़ता है।  वह तो शुक्र है ऊर्जा निगम का, जिसने इस बार गांव में बिजली पहुंचा दी। डिंगाड़ी और सर गांव में आठवीं के बाद बच्चों की शिक्षा पर विराम लग जाता है। सर-बडियार का सबसे नजदीकी इंटर कॉलेज 12 किमी दूर सरनौल में है। डिंगाड़ी में स्थित आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी चिकित्सक विहीन है। इधर, जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान कहते हैं, सर-बडियार में सड़क और संचार की सुविधा उपलब्ध कराना प्राथमिकता में शामिल है।

 


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