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बाबा केदार के जयकारों के बीच बंद हुए केदारनाथ के कपाट… अब छह माह ओंकारेश्वर मंदिर में होगी पूजा

केदारनाथ धाम के कपाट भैयादूज के अवसर पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। 27 अक्टूबर यानी गुरुवार की सुबह विधि-विधान के साथ कपाट बंद होने के बाद 8.30 बजे सेना की भक्तिमय बैंड धुनों के साथ बाबा की पंचमुखी विग्रह उत्सव मूर्ति यात्रा के लिए निकल गयी है। अपने विभिन्न पड़ावों से होते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिए रामपुर पहुंचेगी। इसके बाद डोली ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचेगी जहां शीतकाल के लिए छह माह भोले बाबा के दर्शन होंगे। परंपरानुसार भगवान आशुतोष के ग्याहरवें ज्योतिर्लिंग श्रीकेदारनाथ धाम के कपाट सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। इस मौके पर सैकड़ों भक्तों ने बाबा के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया।  इस वर्ष केदारनाथ यात्रा में रिकॉर्ड 15 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे हैं।

सुबह चार बजे से ही मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना शुरू हो गई थी। मुख्य पुजारी टी गंगाधर लिंग ने आराध्य का श्रृंगार कर आरती उतारी। इस मौके पर स्वयंभू लिंग को समाधि रूप देकर पुष्प व भस्म से ढका गया। भगवान की भोग मूर्तियों को चल विग्रह उत्सव डोली में विराजमान कर भक्तों के दर्शनों के लिए कुछ देर मंदिर परिसर में रखा गया। जिसके बाद विधि-विधान व धार्मिक परंपराओं के तहत सुबह 08.30 बजे केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए शुभ लग्न पर बंद कर दिए गए।  अन्य धार्मिक औपचारिकताओं को पूरा करते हुए प्रशासन व बीकेटीसी के अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर के कपाट बंद कर चाभी एसडीएम ऊखीमठ को सौंप दी गई।

केदारनाथ धाम के कपाट भाई दूज के मौके पर ही बंद होते हैं। दरअसल, केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने की मान्यता महाभारत और पांडवों से जुड़ी है। कहा जाता है कि द्वापर युग में महाभारत के युद्घ के उपरांत पांडव द्रोपदी के साथ हिमालय दर्शन के लिए गए थे। तब, उन्होंने केदारनाथ में भगवान शिव के मंदिर का निर्माण किया और भाई दूज के दिन अपने पित्रों का तर्पण दिया और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। मान्यता है कि भाई दूज दिवाली का अंतिम पर्व है और इसके बाद ठंड भी बढ़ जाती है जिससे हिमालय क्षेत्र में रहना संभव नहीं है। इसलिए, भाई दूज पर केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। गुरुवार को कपाट बंद होने के बाद 29 अक्तूबर को डोली अपने शीतकालीन पूजा गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विराजमान होगी।


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