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नमन है देवभूमि के पूर्वर्जों को, सदियों पहले कर दी थी ऐसे भोजन करने की शुरुआत जो है आज की जरुरत

कुपोषण पूरे भारत में एक ऐसी समस्या है जिससे हर साल पूरे देश में पांच साल से कम उम्र के लगभग 10 लाख से अधिक बच्चे मर जाते हैं पूरी दुनियां में भारत इस मामले में सबसे पिछड़े देशों में है जिसका दुस्प्रभाव ये होता है कि ये जीवनभर एक बच्चे के लिए दुर्भाग्य बना रहता है। अब लोगों को कुपोषण हो क्यों रहा है जरा इसपर गौर करिये, एक तरफ यह माना जाता है कि भारत में पर्याप्त मात्रा में अनाज होता है और इसके बावजूद ये समस्या उत्पन्न हो रही है तो इसका सबसे बड़ा कारण है जहरीली खेती। आज बदलती हुई परिस्थिति में जमीन भी जहरीली हो गयी है हम जो भी खा रहे हैं उसमें भरपूर मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग हो रहा है।

जब अगर हम रासायनिक उर्वरकों से उगाया हुआ भोजन करेंगे तो हमारे शरीर में कुछ न कुछ कमी होना एक सीधी से बात है तो अगर हमें इन सब चीजों से बचना है तो हमें अपने भोजन में भी बदलाव करने आवश्यक हो गये हैं। बात करैं बदलाव की तो उत्तराखंड की ‘बारानाजा’ फसलें इसी बदलाव का प्रतीक हैं जीनमें औषधीय गुणों की भरमार पायी जाती है और इन बारानाजा’ फसलों को उगाना हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले शुरू कर दिया था। भले ही हमारे पहाड़ों में सदियों से चली आ रही इस ‘बारानाजा’ फसल की पैदावार कम हो पर जो पौष्टिक तत्व इसमें पाए जाते हैं उसका कहीं भी कोई मुकाबला नहीं है।

बारानाजा फसल वो फसलें हैं जो पहाड़ों में सदियों से धान और गेंहू की मुख्य फसल के साथ उगायी जाती रही हैं, इसमें मंडुवा व झंगोरा बारानाजा फसलों के रूप में प्रमुख हैं पर इसके अलावा ज्वार, चौलाई, भट्ट, तिल, राजमा, उड़़द, गहथ, नौरंगी, कुट्टू, लोबिया, तोर आदि की फसलों भी इसी के अंतर्गत आती हैं। इन मोटे अनाजों में भरपूर मात्रा वो सारे तत्व मौजूद हैं जो आज के समय में किसी को भी कुपोषण से दूर रख सकता है और वहीँ बारानाजा मिश्रित खेती का भी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है और यह फसलें पूरी तरह से जैविक भी होती हैं जिसके कारण मिट्टी अपनी उर्वरकता भी कायम रख पाती है। तो अगर सही मायनों में गौर किया जाये तो इस बारानाजा फसलों से जहाँ मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती हैं वहीं दूसरी और इनके प्रयोग से हम सब कुपोषण का शिकार होने से भी बचे रह सकते हैं।

 

 


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