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उत्तराखंड में अविश्वसनीय चमत्कार के साक्षी बने स्थानीय व विदेशी श्रद्धालु, वीर ने खाया बकरा और 40 किलो चावल

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है क्यूंकि यहाँ के कण-कण में देवताओं का वास है ऐसा माना जाता है, वेसे अगर देखा जाए ऐसा मानने के बहुत सारे कारण हैं, क्यूंकि देवभूमि में हर जगह ऐसे ऐसे चमत्कार होते रहते हैं जिस पर एक बार विश्वास करना असम्भव सा लगता है। यहाँ आज हम आपको ऐसी ही एक कहानी से रूबरू करा रहे हैं यहाँ बात हो रही है उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ के नृसिंह मंदिर परिसर में हर साल आयोजित होने वाले तिमुंडिया मेले की इस मेले का आयोजन बदरीनाथ धाम की यात्रा को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए धाम के कपाट खुलने से पूर्व मंगलवार या शनिवार को किया जाता है तिमुंडिया को नवदुर्गा का वीर माना जाता है। इस देव कार्यक्रम में नवदुर्गा मां, चंडिका मां, भुवनेश्वरी, तिमुंडिया व दाणी देवता के पश्वा को गाजे-बाजे के साथ नृसिंह मंदिर प्रांगण में लाया जाता है।

इस बार शनिवार यानी 21 अप्रैल को नवदुर्गा मां के गर्भगृह से मां दुर्गा की शक्ति को बाहर निकाला गया उसके उपरान्त सभी देवी-देवताओं ने अपने पश्वा पर अवतरित होकर मां की शक्ति के प्रतीक को पकड़कर नृत्य किया। और इस पल के गवाह बनने के लिए पूरे स्थानीय लोगों के साथ साथ विदेश मेहमान भी आ रखे थे और इसी दौरान सभी भक्तों को ऐसा अद्भुत नजारा देखने को मिला जिसपर थोड़ी देर के लिए भरोसा करना असम्भव है क्यूंकि तिमुंडिया मेले में तिमुंडिया वीर के पश्वा का विकराल रूप देखने को मिला और उन्होंने अविश्वसनीय तरीके से नृत्य करते हुए एक पूरा बकरा, 40 किलो चावल, आठ किलो गुड़ और दो घड़े पानी एक साथ पी लिया। वहां उपस्थित देशी और विदेशी श्रद्धालुओं के मनौती मांगने के बाद तिमुंडिया का वीर शांत हुआ और यात्रा की खुशहाली का आशीर्वाद दिया।

तिमुंडिया वीर की क्या है मान्यता—

तिमुंडिया का अगर संधि विच्छेद किया जाए तो यहाँ ति यानी तीन और मुंडिया मतलब सिर, यानी की नाम से ही प्रतीत होता है कि इसके तीन सिर थे जिसमें वह एक सिर से वेदों का अध्ययन, दूसरे सिर से दिशाओं का अवलोकन और तीसरे सिर से मांस का भक्षण करता था तिमुंडिया का जोशीमठ विकासखंड के ह्यूंणा गांव के जंगलों में इसका आतंक था क्यूंकि वो हर दिन एक आदमियों का भक्षण करता था। इसी बीच मां नवदुर्गा अपनी देवयात्रा पर थी और जब वो इस इलाके में पहुंची तो कोई भी लोग माँ दुर्गा का स्वागत करने तिमुंडिया के डर से नहीं आये। उसके बाद माँ दुर्गा को पता चला कि तिमुंडिया को हर दिन नरबलि चाहिए उसके बाद मां नवदुर्गा व तिमुंडया के बीच भयंकर युद्ध हुआ माँ ने तिमुंडिया के दो सिर काट दिए जिसके बाद तिमुंडिया माँ के चरणों में नतमस्तक हो गया माँ दुर्गा उसकी वीरता से बहुत प्रसन्न हुई तब मां दुर्गा ने तिमुंडिया को निर्देश दिए कि वह इंसानों का भक्षण नहीं करेगा और साल में एक बार उसे बकरे की बलि दी जाएगी। उसके बाद इसी कारण हर साल तिमुंडिया मेला यहाँ आयोजित किया जाता है।