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‘गढ़वाली बोली’ में पढ़ाई की पहल आगे बढ़ी, उत्तराखंड के इस जिले से हो रही है शुरुआत

उत्तराखंड सरकार अब एक शानदार नयी पहल को आगे बढ़ाने जा रही है। उत्तराखंड के पौड़ी जनपद में पांचवीं तक के स्कूलों में गढ़वाली बोली में कोर्स शुरू होने जा रहा है। यह पहला मौका है, जब उत्तराखंड के किसी जिले में पहाड़ी बोली पाठ्यक्रम में शामिल होगी। इसकी किताबों के लिए 40 लाख के बजट की डिमांड सचिव शिक्षा को भेज दी गई है।

आपको बता दें पौड़ी जिले के डीएम धीराज सिंह गब्र्याल ने इस पहल की शुरुआत सबसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर केवल पौड़ी ब्लॉक के स्कूलों की थी, लेकिन 29 जून को गढ़वाल मंडल के स्वर्ण जयंती समारोह में पहुंचे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने पौड़ी के कंडोलिया मैदान से इस पहल की न सिर्फ सराहना की, बल्कि पूरे जिले में ही इसे लागू कराने की घोषणा कर दी थी। गढ़वाली बोली को पाठ्यक्रम में शामिल करने वाला पौड़ी पहला जिला बन गया है।

पांचवीं तक के सभी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल गढ़वाली बोली की पांचों पुस्तकों के नाम गहनों के नाम से गढ़वाली में दिए गए हैं। कक्षा 1 के लिए धगुलि, कक्षा 2 के लिए हंसुलि, कक्षा 3 के लिए छुबकि, कक्षा 4 के लिए पैजबि और कक्षा पांच के लिए झुमिक के नाम से पुस्तकें तैयार की गई हैं। इन किताबों के अंतिम आवरण पृष्ठ पर उत्तराखंड के प्रतीक चिह्न मोनाल पक्षी, कस्तूरी मृग, ब्रह्मकमल और बुरांश पुष्प, जबकि तीसरे आवरण पृष्ठ पर चारधाम सहित हेमकुंड साहिब और गंगा नदी की तस्वीरें बच्चों का ज्ञान बढ़ाएंगी।

बाल जिज्ञासाओं को ध्यान में रखते हुए इन पुस्तकों को तैयार किया गया है। इन्हें तैयार करने में कुल 14 लेखकों ने मेहनत की है। लेखक मंडल में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ‘नेगीदा’ भी शामिल हैं। इन पुस्तकों में उनके गीतों का भी समावेश किया गया है। कक्षा चार की पुस्तक में आवा डाली बनि बनि की लगवा..जैसे पर्यावरण गीत को शामिल किया गया है। कक्षा 5वीं की पुस्तक में लोकगीत सात समन्दर पार..शामिल है।


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