तपोवन निवासी विक्रम सिंह अपने 23 साथियों के साथ तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के बैराज में काम कर रहा था। विक्रम की मां रोशनी देवी को जब दूर से धौलीगंगा में सैलाब आता दिखा तो उन्होंने तुरंत उसे फोन कर ऊपर की ओर भागने को कहा। इसी फोन की बदौलत न केवल विक्रम, बल्कि उसके 23 अन्य साथी भी सही-सलामत हैं।सहमा हुआ-सा उस दिन की घटना को बयां करता हुआ विक्रम बताता है, ‘सुबह के साढ़े दस बजे थे। तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी। उधर से मां चिल्लाते हुए ऊपर की तरफ भागने को कह रही थी। मैंने उनकी बात को मजाक समझ फोन काट दिया। इस पर मां ने फिर फोन किया और जोर-जोर से रोते हुए ऊपर की ओर भागने को कहा। बोली, पहाड़ी से सैलाब आ रहा है। असल में मेरा घर इतनी ऊंचाई पर है कि वहां से धौली गंगा दूर तक साफ नजर आती है।’ आगे पढ़ें:
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‘मां की यह बात सुन मैं सतर्क हो गया और तेजी से डैम की सुरक्षा दीवार पर चढ़ गया। साथ ही चिल्लाते हुए अन्य 23 साथियों को भी बैराज की पहाड़ी पर चढ़ने को कहा। हालांकि, हमारे लिए बैराज की 70 मीटर ऊंची सुरक्षा दीवार पर चढ़ना आसान नहीं था। फिर भी दीवार पर लगे सरियों पकड़कर जैसे-तैसे सभी ऊपर चढ़ गए और सुरक्षित स्थान पर जा पहुंचे। जब मैं घर पहुंचा तो मां मुझे गले लगा फूट-फूटकर रोने लगीं। उनके लिए यह खुशी का सबसे बड़ा मौका था। उनकी फोन कॉल से ही मेरा और बैराज में काम कर रहे 23 अन्य साथियों का जीवन बचा हुआ है।’विक्रम बताता है कि उसने बैराज के नीचे काम कर रहे श्रमिकों को भी आवाज देकर और सीटी बजाकर चेताने का पूरा प्रयास किया। लेकिन कोई आवाज उन तक नहीं पहुंच पाई और देखते ही देखते 50 से अधिक श्रमिक सैलाब की भेंट चढ़ गए। यह खौफनाक दृश्य आपदा के छह दिन बाद भी उसकी आंखों में तैर रहा है। वह साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाया, इसका हमेशा उसे अफसोस रहेगा।