अनुसूया देवी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है, समुद्रतल से करीब 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहाड़ियों पर बना हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अनुसूया गाँव के नाम से जाने जाने वाले इस गाँव में अत्री मुनि ने इसे अपने तप का स्थान बनाया था और वो यहाँ अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे, यहाँ रहने के लिए उन्होंने एक कुटिया का निर्माण किया हुआ था। देवी अनुसूया की ख्याति तीनों लोकों में फैली हुई थी क्यूंकि वो जिस तरह से अपने पतिवर्ता धर्म का पालन करती थी वैसा कोई उदाहरण दूसरा नहीं था।
अनुसूया देवी के पतिवर्ता होने के कारण तीनों देवियाँ यानी माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती उनसे जलती थी, तो एक बार उन्होंने ठानी कि देवी अनुसूया के पतिवर्ता धर्म की परीक्षा ली जाए तो उन्होंने भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा से ये करने के लिए कहा, पहले तो तीनों देवों ने ये सब करने से मन कर दिया क्यूंकि वो नहीं चाहते थे इतनी महान स्त्री के पतिवर्ता धर्म की परीक्षा ली जा।| पर जब बार-बार तीनों देवियाँ इस बात के लिए जोर डालती रही तो थक हारकर तीनों देव अनुसूया देवी की परीक्षा लेने के लिए इस स्थान पर साधु का रूप धारण करके पहुँच गये। उसके बाद तीन देव उनके द्वार पर खड़े होकर उनसे भोजन देने को कहने लगे जब देवी अनुसूया उनके लिए भोजन लेकर आयीं तो तीनों देवों ने कहा कि वो भोजन तभी करेंगे जब वो उनके सामने निर्वस्त्र होकर खडी रहेंगी।
ये सब सुनकर एक बार तो देवी अनुसूया को बहुत दुःख हुआ पर वो अपने द्वार से किसी साधु को भूका वापस जाने नहीं देना चाहती थी तो और वो चिंता में डूब जाती है कि वो ऐसा केसे कर सकती हैं तो उन्होंने आँखे बंद करके अपने पति को याद किया और दिव्य दृष्टि से उन्हें पता चल जाता है कि ये तीनों साधु तो भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा हैं। फिर वो वापस साधुओं के पास पहुँचती हैं और कहती हैं कि वो उनकी बात अवश्य मानेंगी पर उन्हें शिशु रूप लेकर उनका पुत्र बनना होगा, इसके बाद तीनों देव शिशु रूप में बदल जाते हैं और फिर अपना भोजन ग्रहण करते हैं और उसके बाद तीनों देव उनके पुत्र बनकर वहीँ रहने लगते हैं। वही दूसरी और जब बहुत लम्बे समय तक तीनों देव वापस नहीं आते तो तीनों देवियां यानी माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती घबरा जाती है और वो देवी अनुसूया के पास जाकर उनसे माफी मांगती हैं और उनके पतियों को उनके मूलरूप में लाने की बिनती करती हैं उसके बाद माता अनुसूया देवियों की प्रार्थना सुनकर तीनों देवों उनका मूलरूप प्रदान कर देती है और तभी से अनुसूया “माँ सती अनुसूया” के नाम से भी विश्व में प्रसिद्ध हुई।
माँ अनुसूया देवी मंदिर जाने के लिए भक्तों को 6 किलोमीटर की पैदल चड़ाई चढ़नी होती है, हर साल के हाँ पर दत्तात्रेय जयंती समारोह मनाया जाता है जिसके अवसर पर यहाँ हजारों की संख्या में भीड़ इकठ्ठा होती है क्यूंकि इसी स्थान पर अत्री मुनि और माँ अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। इस अवसर पर नौदी मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमें भारी संख्या में लोग अपने-अपने गांवों से देव डोलियों को लेकर पहुंचते हैं और माता अनसूया के प्राचीन मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए एक बड़ा यज्ञ भी हर साल कराया जाता है।