बात है साल 1971 की जब 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के सामने आज ही यानी 16 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत की इस ऐतिहासिक जीत को विजय दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है। इस युद्ध में वीरता का लोहा मनवाने वाले कई सैनिक आज भी वह दिन नहीं भूलते जब भारत के सैनिकों ने अपने अदम्य साहस तथा अनूठे रणनीतिक कौशल की बदौलत 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
उस समय के पूर्वी पाकिस्तान और अब के बांग्लादेश में 93000 पाक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। दुनिया के इतिहास में ये अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण है जो एक देश ने दूसरे देश के सामने किया। पाकिस्तान की हार के बाद दुनिया के नक्शे पर एक नये देश का जन्म हुआ जिसे हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। इस युद्ध के दौरान भारत के 1500 सिपाही शहीद हो गए। इंदिरा गांधी ने जब सेनाध्यक्ष को बुलाकर पाकिस्तानी सेना को जवाब देने को कहा था, तो भारतीय सेना ने इसकी तैयारी के लिए कुछ समय मांगा था। दुनिया भर में भारतीय फौज की वाहवाही होने लगी।
इस युद्ध में प्रदेश के रणबांकुरों ने वीरता की मिसाल पेश की थी। उत्तराखंड के 255 जांबाजों ने अपनी कुर्बानी दी थी। दुश्मन सेना से लोहा लेने वाले 74 जवानों को वीरता पदक से नवाजा गया था। जबकि छह जांबाजों को वीरता का दूसरा सर्वोच्च पदक, महावीर चक्र प्रदान किया गया था। सैन्य विशेषज्ञ बताते हैं कि वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में दुश्मन सेना को नाको चने चबाने में भी उत्तराखंड के जवान सबसे आगे थे। हरिद्वार को छोड़कर अन्य सभी जनपदों के 255 सैन्य अधिकारी/जवान इस युद्ध में शहीद हुए थे। इसमें पिथौरागढ़ के 52, देहरादून के 42 जवान शहीद हुए थे। चमोली (रुद्रप्रयाग सहित) के 41 जवान इस युद्ध में शहीद हुए थे।