देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों ऐसी जगहें हैं जो अपने आप में विशेष महत्व रखती हैं, अद्भुत लोक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं वाले देवभूमि की बात ही दुनियां में कुछ और है। नैसर्गिक सौंदर्य और खूबसूरत पर्यटन स्थलों के कारण यहां न सिर्फ देश बल्की दुनिया से पर्यटकों का साल भर आना- जाना लगा रहता है। खासकर कि मई और जून वो महीना होता है जब दुनियांभर से पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं| हम इसी कड़ी में आज बात कर रहे हैं उत्तराखंड की एक अलग पहचान बनाने वाली जगह पाताल भुवनेश्वर गुफा की। पिथौरागढ़ में स्थित यह गुफा प्रकृति की खूबसूरती से भरपूर है। गंगोलीहाट तहसील मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर पाताल भुवनेश्वर गुफा का उल्लेख पुराणों में हैं। भगवान राम, शिव और पांडवों से इस कंदरा की मान्यताएं जुड़ी हैं।
पाताल भुवनेश्वर गुफा में तमाम आकृतियां उभरी हुई हैं। इसमें भगवान शिव की जटाएं, भगवान गणेश व शिवलिंग जैसी आकृतियां श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं। गुफा के भीतर छोटा जलकुंड भी है जबकि बाहर कई मंदिर स्थित हैं। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है। यह गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोधवश गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वह शिव ने इस गुफा में रख दिया।
पाताल भुवनेश्वर में गुफा में भगवान गणेश कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव शिव अन्य देवताओं के साक्षात दर्शन किये। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।