कल तड़के सुबह उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले के कबिल्ठा गाँव के रहने वाले मानवेन्द्र सिंह रावत जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गये हैं| शहीद का परिवार देहरादून में ही रहता है पर आजकल बच्चों की छुट्टियाँ होने के कारण वो सब अपने गांव जा रखे थे, मानवेन्द्र जब मुठभेड़ पर जाने वाले थे उससे पहले बुधवार की शाम को लगभग 8.30 बजे उनकी अपने घरवालों से बात हुई थी और इस दौरान उन्होंने अपने पिता नरेंद्र सिंह रावत मां कमला देवी और पत्नी विनिता सहित दोनों बच्चों से बातचीत की थी उनका हालचाल पूछने के बाद मानवेन्द्र ने बताया था कि इन दिनों घाटे में काफी तनाव है, बॉर्डर पार से लगातार फायरिंग की जा रही है और हर समय यहाँ खतरा है|
जम्मू कश्मीर के बांदीपुरा में तैनात सूबेदार मेजर नरेंद्र सिंह ने इस पर बताया कि रात 10.30 बजे से आतंकियों से मुठभेड़ शुरू हो गई थी, दोनों ओर से जबरदस्त गोलीबारी शुरू हुई और फिर हमारे जवानो और मानवेन्द्र ने दो आतंकियों को ढेर कर दिया था पर उसी बीच लगातार दो गोलियां मानवेंद्र को जा लगी, जिससे वह बुरी तरह से लहुलहुहान हो गए। इसके बाद उन्हें तुरंत आर्मी हॉस्पिटल में ले जाया गया और हॉस्पिटल से अंतिम बार मानवेन्द्र ने रात 12 या 1 बजे के बीच अंतिम बार अपने घर वालों से बात की और उनके साथ क्या हुआ इस पूरी घटना से उन्हें अवगत कराया और कहा कि माँ चिंता मत करना मैने दो आतंकवादियों को मार दिया है ये सब सुनकर पूरा परिवार को गर्व भी हुआ और एक तड़प भी उठी, और फिर सुबह लगभग 3.30 बजे अस्पातल में ही मानवेन्द्र सिंह देश के लिए शहीद हो गये|
अपने फौजी पिता नरेंद्र सिंह से प्रेरणा से लेते हुए ही मानवेंद्र सिंह का भी शुरू से सपना भारतीय सेना में जाने का ही था इसी कारण जब उनका इंटरामिडिएट पूरा हुआ तो साल 2007 में वह सेना में भर्ती हो गये थे। मानवेन्द्र सिंह सात भाई-बहनों में तीसरे हैं, इनका विवाह 2011 मे हुआ। इनके 5 साल की बेटी और 3 साल का बेटा हैं जो मोबाइल पर अपने पिता की फोटो को देखते रहते हैं और उनके घर वापस आने का इंतज़ार करते रहते हैं। लेकिन इन मासूमों को कौन बताये की अब उनके पिता कभी घर नहीं लौटेंगे।
शहीद मानवेन्द्र सिंह के चाचा दिलवर सिंह ने बताया, की मानवेन्द्र बचपन से हंसमुख व्यवहार और जरुरतमंदो की मदद करने वाला इन्सान था। पूरा गांव मानवेन्द्र की तारीफ करता था। चार वर्ष पूर्व ही मानवेन्द्र ने देहरादून मकान भी बना लिया था। लेकिन त्यौहार, घर-परिवार और गांव के छोटे-बड़े कार्यो में वह परिवार के साथ हर वर्ष गांव आता रहता था। शहीद की मौत की खबर सुनकर मानवेन्द्र के परिवार के साथ ही पूरा गांव बेसुध पड़ा हैं। गांव के प्रधान का कहना हैं गांव ने अपना होनहार बेटा खो दिया हैं।