भारतीय क्रिकेट को युद्ध मान लें तो आपके जेहन में योद्धा कहते ही कौन सा चेहरा आएगा? नहीं, धोनी नहीं. वह कुशल रणनीतिकार हैं, वह दिलेर सेनापति हैं जो आगे बढ़कर मोर्चा लेता है. पर उतना ही शांत और खामोश भी रहता है. पर असली योद्धा? जिसके चेहरे पर एक आक्रामक गुर्राहट रहती हो? ऐसा कौन खिलाड़ी था? ऐसा जाबांज जो उस देश के गेंदबाज को छह छक्के उड़ा सकने की कूव्वत रखता हो, जहां क्रिकेट का जन्म ही हुआ. अब आपने सही पकड़ा बात हो रही है युवराज सिंह की. अगर सौरभ गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को लड़ने का जज्बा दिया और नख-दंत दिए थे तो उस तेवर के प्रतिनिधि क्रिकेटर युवराज सिंह थे.
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि युवराज सिंह ने काफी शानदार करियर बनाया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह बहुत सारी ऊँचाइयों और कुछ क्रूर निम्नताओं से भरा पड़ा है। विश्व कप विजेता बनने से लेकर जानलेवा कैंसर से पीड़ित होने तक, युवराज ने भारत के लिए खेलते हुए पूरे समय लचीलापन, साहस और शुद्ध प्रतिभा दिखाई। हम अक्सर इस वाक्यांश का उपयोग करते हैं – ‘जीवन और मृत्यु का मामला’, युवराज ने इसे वास्तविकता में जीया, एक ऐसी वास्तविकता जिसे आप किसी के साथ नहीं चाहेंगे। वह लड़ते-लड़ते इससे बाहर आ गया। अब यदि आपको कभी किसी प्रेरणा की आवश्यकता हो तो यह अत्यंत प्रेरणादायक है।
साल 2011 वर्ल्ड कप में जो चमत्कार युवी ने करके दिखाया था, उसकी महज कल्पना से ही लोगों की रूह कांप जाती है। शरीर पर हावी होती कैंसर की बीमारी और मैदान पर मुंह से निकलती खून की उल्टियां। मगर मजाल है कि बंदा हार मानने को तैयार हो। युवराज सिंह को बीच टूर्नामेंट में ही पता लग गया था कि उनको कैंसर जैसी गंभीर बीमारी जकड़ रही थी। मैदान पर खून की उल्टियां हो रही थीं और शरीर जवाब दे रहा था। हालांकि, पूरे वर्ल्ड कप में युवराज ने इस बात की भनक किसी को भी नहीं लगने दी। अपने दर्द और बीमारी से युवी लड़ते रहे और 28 साल बाद भारत को क्रिकेट की दुनिया का बेताज बादशाह बनाकर ही दम लिया।
सबसे प्रतिभाशाली भारतीय बल्लेबाजों में से एक, सबसे बड़े मैच विजेताओं में से एक, युवराज सिंह यकीनन एकदिवसीय क्रिकेट में बल्ले से भारत के पहले धुरंधर के रूप में जाने जाएंगे। हां, उनसे पहले कपिल देव थे लेकिन किसी ने भी सबसे बड़े मंच पर उस तरह की निरंतरता के साथ ऐसा नहीं किया जैसा युवराज ने किया। 90.50 की औसत से 362 रन और 15 विकेट लेकर युवराज ने भारत को 2011 विश्व कप जिताया, मैन ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया।
एमएस धोनी के बल्ले से निकले उस विनिंग शॉट की खुशी युवी की आंखों में साफतौर पर दिखाई दी थी। उस दिन हर किसी की पलकें भीगी हुई थीं, लेकिन वो आंखू खुशी के थे। 28 साल बाद ही सही, पर करोड़ों भारतीय फैन्स का सपना साकार हुआ था। कैंसर को मात देकर युवराज देश को वर्ल्ड कप जिताने में सफल रहे थे। युवी के हौसले और हार ना मानने वाले जुनून को पूरी दुनिया ने सलाम ठोका था।