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यहाँ जानिये देहरादून का इतिहास, कैसे हुई थी उत्पत्ति और क्या है खूबियाँ

उत्पति–

देहरादून दो शब्दों देहरा और दून से मिलकर बना है, इसमें देहरा शब्द को डेरा का अपभ्रंश माना गया है। जब सिख गुरु हर राय के पुत्र राम राय इस क्षेत्र में आए तो अपने तथा अनुयायियों के रहने के लिए उन्होंने यहाँ अपना डेरा स्थापित किया। इस शहर का विकास इसी डेरे का आस-पास प्रारंभ हुआ। इस प्रकार डेरा शब्द के दून शब्द के साथ जुड़ जाने के कारण यह स्थान देहरादून कहलाने लगा। एक अत्यन्त प्राचीन किंवदन्ती के अनुसार देहरादून का नाम पहले द्रोणनगर था और यह कहा जाता था कि पाण्डव-कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर अपनी तपोभूमि बनाई थी और उन्हीं के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ था। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार जिस द्रोणपर्त की औषधियाँ हनुमान जी लक्ष्मण के शक्ति लगने पर लंका ले गए थे, वह देहरादून में स्थित था, किन्तु वाल्मीकि रामायण में इस पर्वत को महोदय कहकर संबोधन किया गया है।

भूगोल–

देहरादून शहर के भूगोल पर नजर फेरी जाये तो एक तरफ छोटी-छोटी पहाडियां है, जिन पर सर्दियों में बर्फ अपना डेरा जमाती है। इन्हीं पहाड़ियों पर पहाडों की रानी के नाम से विख्यात मसूरी शहर बसा है। इसी पर्वत श्रृंखला में यमुना की उपरी पहाड़ी पर चकराता है, तो दूसरी ओर धनोल्टी, सुरकण्डा व कुंजापुरी जैसे प्रसिद्व स्थान है। लगभग तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा देहरादून शहर एक ओर गंगा व यमुना की ओर खुला हुआ है। इसीलिए इसे दून भी कहा जाता है।

इतिहास–

सबसे पहले साल 1611 में 3005 रुपये में बेचा गया था। फिर 1636ई* में मुगल सेनापति नवाज़त खाँ और रानी कर्णावती के बीच देहरादून में युद्ध हुआ। साल 1674 से पहले देहरादून का नाम पृथ्वीपुर था। साल 1676 में मुगल सम्राट औरंगजेब नें देहरादून क्षेत्र गरुराम राय को दे दिया। इसके बाद साल 1757 में नजीबुदौला ने इस शहर को टिहरी नरेश को हरा कर हासिल किया। फिर साल 1803 में गोरखों ने देहरादून पर कब्जा कर लिया था। साल 1803 में खुड़बुड़ा देहरादून में गोरखा सेना से लड़ते हुए गढवाल नरेश प्रदुमन शाह बीरगति को प्राप्त हुए थे। साल 1814 में कैप्टन हरसी ने देहरादून को 100 रुपये मासिक शुल्क पर ईस्टइंडिया कम्पनी को लीज में दे दिया था। साल 1815 में अंग्रेजों ने गोरखों को भगाकर देहरादून पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। साल 1823 में पलटन बाजार बना,इसके दोंनों तरफ पलटन रहती थी। साल 1823 में अंग्रेजों ने देहरादून को अपने ढंग से बसाना शुरू कर दिया था। 1825 में देहरादून को कुमाऊं क्षेत्र में मिलाया गया और 1828 में देहरादून व जौनसार बावर को एक अलग डिप्टी कमिश्नर के अंतर्गत लाया गया। 1829 में देहरादून जिले को कुमाऊं मंडल से हटाकर मेरठ मंडल में शामिल किया गया। इस बीच 1826-1827 में अंग्रेजों ने लंढोर और मसूरी शहर बसाए, जहां वे आराम करने जाया करते थे। फिर साल 1840 में चीन से लाया लीची का पौधा यहाँ लगाया गया था। साल 1842 में अफगान शासक अमीर दोस्त द्वारा अफगानिस्तान से बासमती बोई गयी। 1842 में देहरादून को एक बार फिर सहारनपुर जिले में मिला दिया गया। 1871 में देहरादून को एक अलग जिला बनाया गया. आजादी के बाद 1968 में देहरादून को मेरठ मंडल से हटाकर गढ़वाल मंडल में मिलाया गया। साल 1857 में  डॉ जानसन द्वारा चाय बाग लगाया गया। साल 1867 में देहरादून नगर पालिका बनी। साल 1867 में देहरादून एक जिला बना था। साल 1904 में डीएवी कालेज आरंम्भ हुआ था। साल 1929 में गाँधी जी ने तिलक रोड़ पर बनिता आश्रम की आधारशिला रखी। साल 1939 तक देहरादून में केवल दो कारें थी। साल 1948 से 1953 तक आनंदसिंह ने अपने पिता बलबीर सिंह की याद ने घंण्टाघर बनाया था।

पर्यटन स्थल–

देहरादून में कई पर्यटन स्थल है। भारत का प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल देहरादून देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी है। शिवालिक पहाड़ियों के बीच बसा देहरादून प्रतिवर्ष लाखों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। देहरादून, एक ऐसा शहर जो मशहूर है अपनी ख़ूबसूरती के लिए यहां घूमने के लिए पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है। यहां ‘आसन बैराज’, ‘गुच्चुपानी’, ‘बुद्धा टेंपल’ सहस्त्रधारा, फारेस्ट म्यूजियम जैसी कई प्रसिद्ध जगहें हैं। अगर आप देहरादून घूमना चाहते हैं तो यहां आप एक दिन में भी आराम से घूम सकते हैं। देहरादून में पर्यटकों के लिहाज़ से वो सब मौजूद है जो किसी भी पर्यटक के लिए पर्याप्त होता है।


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