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कट्टर हिन्दू संगठनों को होगा पेट दर्द, रमजान में हर बार रोजा रखते हैं रतन सिंह, पूरी दुनियां को देते हैं भाई-चारे का पैगाम

आजकल मुस्लिम धर्म का सबसे पवित्र माह रमजान चल रहा है और इस दौरान सभी रोजेदार रोजा रखकर अल्लाह के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं पर अगर हम आपको कहैं कि देवभूमि में एक तरफ इन्सानितय की मिसाल पेश करने वाले आरिफ खान जेसे व्यक्ति हैं जो अपना रोजा सिर्फ इसलिए तोड़ देते हैं कि एक हिन्दू व्यक्ति को खून की जरुरत थी तो वो अपना रोजा तोड़कर तुरंत उस जगह पहुँच गये तो दूसरी तरफ रतन सिंह जैसे लोग भी हैं जो साल 1992 से रमजान के महीने में रोजा रखते हुए आ रहे हैं, ये खबर पड़कर कट्टर संगठनों के पेट में दर्द होना जरुर शुरू हो गया होगा।

जी हाँ ये सच है रमजान के पवित्र माह में खुदा की इबादत  में मुस्लिम समुदाय तो तत्पर रहते ही हैं पर हरिद्वार के लक्सर निवास रतन सिंह जैसे लोग भी हैं जो उतनी ही तल्लीनता के साथ पिछले 26 सालों से रोजा रखते आ रहे हैं और वो कहते हैं खुदा की इबादत हो या भगवन की पूजा दोनों हैं तो एक ही और वो ईश्वर-अल्लहा तेरो नाम जैसे वाक्य को यहाँ सार्थक भी करते हैं। उम्र के 70 पड़ाव पूरे कर चुके रतन सिंह की रूडकी मार्ग पर रेडीमेट गारमेंट्स की दुकान है उनके घर में दो बेटे और दो बेटियां हैं अब सबके शादी हो चुकी है।

रतन सिंह बताते हैं कि बात 1992 की है जब उनकी बेटी की शादी नहीं हो रही थी तो इसके लिए वो विभिन्न धार्मिक स्थानों पर जाकर मन्नतें मांगने लगे तो किसी आलीम ने उन्हें रोजे रखने की सलाह दी और जब उन्होंने रोजा रखा तो उन्हें अच्छा लगा और उसके बाद अगले साल यानी 1993 में बेटी की शादी भी हो गयी पर उन्होंने रोजे रखने का वो क्रम जारी रखा जो आजतक चला आ रहा है। रतन सिंह कहते हैं कि में हिन्दू हूँ, नवरात्रों में नौ दिन का वर्त भी रखता हूँ और अपने धर्म में गहरी आस्था भी रखता हूँ लेकिन दूसरे धर्म का भी हमेशा सम्मान करना चाहिए क्यूंकि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।

रतन सिंह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि जब शुरू में उन्होंने रोजा रखना शुरू किया तो आसपास के लोग सवाल उठाते थे लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होता चला गया। रोजा रखने पर उनके बहु-बेटों को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं है बल्कि जब रतन सिंह सुबह उठते हैं तो उनकी बहु ही हमेशा उनके लिए सुबह सुबह सहरी में खाने पीने की ब्यवस्था करती हैं और शाम को वो फिर इफ्तारी करते हैं। इस सब पर लक्सर की जामा मस्जिद के मौलवी ग़ालिब रशीद कहते हैं कि रतन सिंह पूरी दुनियां को इंसानियत और भाई-चारे का पैगाम दे रहे हैं और रोजा रखने को मजहबी नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए।


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