आज यानी 19 अप्रैल को पूरे देशभर में हनुमान जयंती बड़ी धूमधाम से मनायी जा रही है, इस विशेष दिन पर हम आपको आज उत्तराखंड के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के बारे में बता रहे हैं। हनुमानजी के इस मंदिर की मान्यता इतनी प्रसिद्ध है कि मंदिर में भंडारा करवाने के लिए 2025 तक बुकिंग हो चुकी है। श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार में बाबा की चौखट से कोई भी श्रद्धालु निराश नहीं लौटता है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी होती है। मनोकामना पूरी होते ही भक्त मंदिर में भंडारा कर हनुमान जी को भोग लगाते हैं। श्रद्धालुओं पर बजरंग बली की नेमत इस कदर बरसती है कि यहां भंडारा आयोजन के लिए भक्तों को सालों साल इंतजार करना पड़ता है। धाम में अगले छ वर्षों यानी 2025 तक भंडारों की एडवांस बुकिंग चल रही है। कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली धाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। बजरंग बली जी के इस पौराणिक मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है। श्री सिद्धबली बाबा के दर्शन को देश एवं विदेश से श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं और मंदिर में मत्था टेककर मनोकामना मांगते हैं। बाबा अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। मुराद पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारा कर भोग लगाते हैं।
भंडारे के आयोजन के लिए मंदिर समिति की ओर से बुकिंग की जाती है। भंडारा बुकिंग काउंटर के प्रभारी सुनील बुड़ाकोटी और शैलेश कुमार जोशी बताते हैं कि रविवार, मंगलवार और शनिवार को विशेष भंडारा होता है। रविवार और मंगलवार के भंडारा आयोजन 2025 तक बुक हो चुके हैं। शनिवार के भंडारे लिए भी 2024 तक एडवांस बुकिंग हो चुकी है। अन्य दिनों के भंडारे भी 2019 तक के लिए बुक हैं। श्री सिद्धबली धाम की ख्याति देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है। हर साल लाखों भक्त देश एवं विदेश से धाम पहुंचते हैं। भंडारा बुकिंग काउंटर के शैलेश कुमार जोशी बताते हैं कि भंडारे की एडवांस बुकिंग कराने वाले श्रद्धालु उत्तराखंड के अलावा यूपी, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र से हैं। कई एनआरआई भी हैं, जिनकी मुराद धाम में आने पर पूरी हुई है। श्री सिद्धबली धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष कुंज बिहारी देवरानी के मुताबिक श्री सिद्धबली धाम गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या स्थली रही है। आदिकाल में मंदिर स्थल पर सिद्ध पिंडियां थीं। 80 के दशक में मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापित हुई। इसके बाद ही मंदिर का सुंदरीकरण हुआ। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए इसी रास्ते गए थे।