Dear सौंणू की ब्वे। कन् बताऊं अब मै त्वे। जब से आया हूं मै दिल्ली, तेरी याद आती है सिल्लि सिल्लि. पर तू इस संकोच मे मत रहना की मै जांणी बूझी के घर नहीं आ रहा हूं, म्येरी भी अपनी नौकरी की मजबूरी है। पर क्या करूं इतना ह्यूंद बसग्याल् बीत गया पर निरभगि मैनेजर मेरी छुठि स्वीकृत ही नहीं कर रहा है, भौत Email उसको Sent कर दिये पर उसके कान मे तो एक भी ज्यूं तक नहीं रींग रहा।।। बार-बार नौकरी से निकालने की बात करता है. कै बार बोल दिया कि म्येरे घर साटी मांडने के दिन आ रहे है। और बहुत काम काज है और Wife भी अकेले है तो कहता है कि घर के काम के लिए कोई छूटि नहीं है, अब ये क्या जाने खेती बाड़ी की बातें.
आफिस की HR को कुछ ज्यादा ही बिजोग पड़ गया है। खुद का Performance Appraisal तो आज तक कभी ठीक नही रहा है और मेरे छुठि जाने के समय पर उसे अपने सारे HR के Subject याद आ जाते हैं। ब्याली तो गुस्से में मैने भी ढुकरताल मार दी थी आफिस में और अपने देबता को पुकार लिया था कि सच्चु नरसिंग होगा तो अगले साल तक ये दोनो इस कुर्सी पर ना रिंग्ये, आज कल ही खुद उस मैनेजर की शादी हुई है और खुद तो दिन भर अपनी ब्वारी से फोन पर बकड़ी बकड़ी करता रहता है, और ब्वारी को भी Miss you /I love you बेबी। बच्चा। जानू । फानू। निखानू। बल पता नहीं है क्या क्या, बल आज कल के शादी सुदा लड़के अपनी ब्वारी को ये सब क्यूं कहते है। बल यही तो कलयुग है Dear सौंणू की ब्वे, जिस ब्वारी (Wife) को अर्धागंनी, जीवन संगनी, पत्नी के नाम से बुलाते थे आज उसको बेबी। प्याला बच्चा। जानू के नाम से बठ्याने लगे हैं.
पर तू जरा सी भी मत भिलच्याना म्येरी खुद में। तू तो आज भी म्येरी। देवी भगवती है। और उपर से मुझे मैनेजर समझा रहा था कि wife को भी Time देना पड़ता बल नहीं तो लड़ाई झगड़ा यहां तक कि Divorce की बात कर देती है। फिर मैने मैनेजर को कहा जैंसा आपको भी अपनी Wife की डर हैं वैसें ही मुझे भी अपनी ब्वारी की डौर है। पिछले हफ्ते तूने जब What’s-up पर मुझे I miss you सौणूं के पिताजी का मैसेज भेजा था बल त्येरे उस मैसेज को पढ़कर म्येरे जुकड़े में बहुत पीढ़ा होने लगी थी। और रात भर मुझे भी निन्द नहीं आई। तभी ये होण तो तभी तै होण फरक रहा था। और बार बार त्येरी खुद में बीड़ी सुलगा रहा था। पर तू एैंसा कभी मत सोचना कि मुझे त्येरी याद नहीं आती, जिस प्रकार तू मुझे “Miss” करती है उसकी प्रकार मुझे भी त्येरी “बिज्यां खुद” लगती है.फिर त्येरी पीढ़ा में द्वी घुटकी पी लेता हूं,
काश स्कूल के दिनो में मैने असवाल गुरूजी और रांणा गुरूजी की बात सुनी होती तो आज मैं भी वहीं किसी विभाग जेई बन जाता पर क्या कन् उन दिनो मै गुरुजी को बहुत छिज्याता था और उनको भी कुजांणी कितने नाम से बठ्याता था , पर अक्ल और उम्र की भैंट कभी नहीं होती अगर होती तो आज हम द्वीया झणां दगणी रहते और साथ साथ मिलकर त्येरे साथ घर के धांण काजी में हाथ बटांता सौंणू की ब्वे, पर मै भी यहां खूब मेहनत करता हूं जिससे कि म्येरे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके और उनको कभी द्वी पैंसो की कमी ना हो.
लेख – हरदेव नेगी