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पेशावर कांड के महानायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को उनके जन्मदिन पर श्रद्धांजलि

आज ही के दिन 25 दिसम्बर को उत्तराखंड के महान सपूत वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म हुआ था। इनका जन्म पौड़ी जिले के थलीसैण ब्लाक के मासी, रौणीसेरा गाँव में हुआ था। चन्द्र सिंह के पिता जी का नाम जलौथ सिंह भंडारी था, और वह एक अनपढ़ किसान थे| इसी वजह से चन्द्र सिंह को भी वो शिक्षित नहीं कर पाए पर चन्द्र सिंह ने अपनी मेहनत और लगन से ही पढ़ना लिखना सीख लिया था। बात 3 सितम्बर 1914 की है चन्द्र सिंह सेना में भरती होने लैंसडौन पहुंचे, और वो पहले ही प्रयास में सेना भरती भी हो गए थे। वीर चन्द्र सिंह ने मेसोपोटामिया और बग़दाद में हुई लड़ाई में भाग लिया और दोनों युद्ध में अंग्रेज सेना की और से लड़ते हुए इन्हें जीत प्राप्त हुई थी।

और जब प्रथम विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ था तब मित्र राष्ट्रों की और से लड़ते हुए भाग लिया| यूरोप और मध्य पूर्व क्षेत्र में हुई लड़ाई में हिस्सा लेते हुए 1930 में वीर चन्द्र गढ़वाली की बटालियन को पेशावर जाने का हुक्म मिला। अब बात पेशावर के किस्साखानी बाजार में 23 अप्रैल 1930 को जब खान अब्दुल गप्फार खान अपने साथियों के साथ एक आम जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो वीर चन्द्र सिंह को उनकी 72 गढ़वाली सैनिकों की एक टुकड़ी को अग्रेजों ने पूरी जनसभा पर गोलियां चलाने का आदेश दिया। पर अपने कैप्टेन रिकेट के आदेश को दरकिनार करते हुऐ वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने बाकी गढ़वाली सैनिकों को सीज फायर न करने का आदेश देकर अंग्रेजों के खिलाफ पहले सैनिक विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया था।

अंग्रेजी हुकूमत के इस आदेश को न मानने के कारण पेशावर में ही वीर चन्द्र सिंह को नजरबन्द कर दिया गया और उनपे मुकदमा चलाया गया। 15 साल तक वीर चन्द्र सिंह को जेल में रहना पड़ा, और उसके बाद जब वो जेल से छूट कर बहार आये तो उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए आन्दोलन छेड दिया था। भारत की आजादी के पश्चात भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने उत्तराखंड और गढ़वाल में व्याप्त अनेक कुरीतियों से जंग लड़ी| पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए भी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली आजीवन लड़ते रहे और उनका ये भी मानना था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी भी पहाड़ में ही होनी चाहिए। 1 अक्टूबर 1979 को वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का लम्बी बिमारी के बाद देहान्त हो गया। 1994 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया। और आज कई सड़कोंअ और योजनाओं  के नाम भी इनके नाम पर रखे गये हैं।


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