उत्तराखंड में चल रही राजनीतिक हलचल के बीच उत्तराखंड से सोमवार शाम मंत्रियों और विधायकों की दिल्ली रवानगी होनी शुरू हो गई। शाम तक चार मंत्रियों समेत 30 से अधिक भाजपा विधायक दिल्ली पहुंच गए थे। वहीं, अन्य विधायकों की भी देर रात तक दिल्ली पहुंचने की संभावना बनी हुई थी। सोमवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अचानक दिल्ली दौरे के साथ ही प्रदेश के सियासी गलियारों में हलचल शुरू हो गई थी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ कई मोर्चों पर घेराबंदी शुरू हो गयी है। इसमें उनके ही अपने विधायकों की नाराजगी से लेकर उत्तराखंड में बनाए गए नए गैरसैंण मंडल की राजनीति और भाजपा की अंदरूनी कलह भी हावी है।
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उत्तराखंड में अगले साल चुनाव हैं, इसलिए भारतीय जनता पार्टी अगले साल होने वाले चुनावों में किसी भी तरीके का कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती है। ऐसे में पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री को बदलने का दबाव है, वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी बने रहने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी से भी मंगलवार को भाजपा नेतृत्व उत्तराखंड के मसले पर चर्चा करेगा। इससे उत्तराखंड भाजपा में किसी बड़े घटनाक्रम के संकेत साफ नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि मंगलवार को दिल्ली में होने वाली भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में उत्तराखंड को लेकर फैसला ले लिया जाएगा।
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असंतुष्ट नेताओं को इस बात का भरोसा था कि मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद रावत सभी को साथ लेकर चलेंगे और उनका सम्मान करेंगे। लेकिन असंतुष्ट नेताओं के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम करने का तरीका ठीक इसके उलट निकला। उनके कामकाज का तरीका ऐसा रहा कि कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी बढ़ती चली गयी और वे अधिकारियों के बीच घिर गये। पूरी सरकार उन्हीं के भरोसे चलने लगी। अपना काम न करवा पाए कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ने लगी, जो अब विद्रोह जैसी स्थिति में पहुंच गई है। अगर अब दखलंदाजी नहीं की गई तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।