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बाबा केदार के सहारे चल रही केदारनाथ धाम में हेली सेवा… हैरान कर देगी एक दिन में उड़ानों की संख्या

हेलीकाप्टर की उड़ान से पहले पायलट सुरक्षा के सभी मानकों का पालन करते हैं। मौसम की पल-पल की जानकारी ली जाती है, लेकिन केदारघाटी जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हेलीकाप्टर, पहाड़ और बादलों का दुर्योग पल-पल पायलट की परीक्षा लेता है। पहाड़ और बादलों की इस चुनौती से पार पाना हमेशा आसान नहीं रहता। देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत के हेलीकाप्टर क्रैश में भी ऐसा ही दुर्योग सामने आया था। इस तरह की विकट परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता। तो फिर कैसे इन चुनौतियों से पार पाकर सुरक्षित उड़ान भरी जा सकती है?

इसका जवाब देते हुए उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग के पूर्व प्रमुख अभियंता जी सितैया कहते हैं कि केदारनाथ क्षेत्र में उड़ान भरने के लिए मौसम की जानकारी को जरा भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जो भी कंपनी केदारनाथ क्षेत्र में हेली सेवाओं का संचालन कर रही हैं, उनके पायलट इन बातों का पूरा ख्याल रखते भी हैं। सबसे अधिक दिक्कत यह आती है कि केदारघाटी में उड़ान भरने के बाद अचानक मौसम बदल जाता है और हेलीकाप्टर के सामने बादल आ जाते हैं। यह स्थिति बेहद खतरनाक होती है। कई बार पायलट इससे बचने के लिए अतिरिक्त प्रयोग करते हैं, लेकिन विषम परिस्थितियों में निर्णय हर बार साफल नहीं होते हैं।

लेकिन दूसरा पहलू यह है कि बाबा केदार के दर्शन कराने के लिए 18 साल से हेली सेवा संचालित हो रही है। लेकिन, अभी तक व्यवस्थित उड़ान के लिए कहीं भी एयर ट्रैफिक  कंट्रोल टावर स्थापित नहीं किया गया है। जबकि, बीते छह वर्षों में भारतीय सेना का एमआई-26 और चिनूक हेलीकॉप्टर भी यहां लैंड कर  चुके हैं। समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तीन तरफा पहाड़ियों से घिरा हुआ है। सिर्फ केदारघाटी वाला क्षेत्र है, जो वी आकार का है और यही केदारनाथ पहुंचने का एकमात्र रास्ता भी है। मंदाकिनी नदी का स्पान काफी कम होने के कारण दोनों तरफ ऊंची पहाड़ियां हैं, जिससे घाटी बहुत ही संकरी है। साथ ही यहां मौसम का मिजाज कब खराब हो जाए, कहना मुश्किल है।

हेलीकॉप्टर हादसे से सुरक्षा एजेंसी से लेकर प्रशासन तक अलर्ट मोड पर आ गया है। चिंता की बात है कि मानकों का उल्लंघन कर हेलीकॉप्टर उड़ान भर रहे हैं, जिससे तीर्थ यात्रियों की जान पर भी बनी रहती है। एक दिन में चॉपर के उड़ाने भरने की संख्या हैरान करने वाली है। केदारनाथ में हेली यात्रियों की संख्या बढ़ने पर अब एक साफ मौसम वाले दिन में ढाई सौ तक उड़ानें संभव हो जाती हैं। डीजीसीए के मानकों के मुताबकि सूर्येादय के आधा घंटे बाद हेली ऑपरेशन शुरू किए जाते हैं, जो सूर्यास्त से आधा घंटे पहले थम जाते हैं। इस तरह जून के महीने में अक्तूबर के माह के मुकाबले उड़ान का अधिक समय मिलता है।

केदारनाथ के लिए हेली सेवाओं का जोर पकड़ने के साथ ही इस संवेदनशील क्षेत्र में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए तय मानकों भी जमकर उल्लंघन हो रहा है। हेली सेवा संचालन के लिए वन्य जीव संस्थान की ओर से यहां सख्त मानक बनाए गए हैं। जिसमें हेली सेवा की उड़ान जमीन से छह सौ मीटर ऊंचाई पर रखने के साथ ही ध्वनि प्रदूषण का मानक अधिकतम 50 डेसिबल तक रखने को कहा गया है। नियमानुसार हेली कंपनियों को अपनी उड़ान का विवरण वन विभाग को देना होता है, साथ ही विभाग भी समय समय पर मानकों की जांच करता है। लेकिन हेलीकॉप्टर कई बार महज दो सौ मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए, सौ डिसिबल तक ध्वनि प्रदूषण करते हुए पाए गए हैं। इसी साल जून के पहले सप्ताह में केदारनाथ वन प्रभाग ने एक हेली कंपनी का चालान किया था। नीचे उड़ान भरने से पशु पक्षियों की सामान्य दिन चर्या प्रभावित होती है।


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