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26 नवम्बर संविधान दिवस पर जानिये देहरादून में किस जगह छपा था भारत का संविधान

भारत में आजादी के बाद संविधान सभा द्वारा 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन की बहसों के बाद डॉ. भीमराव आम्बेडकर द्वारा (ड्राफ्ट किए गए) तैयार किए गए संविधान का ढांचा जब 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत किया गया तो उसे प्रकाशित करने की भी एक बड़ी चुनौती सबके सामने थी। मसौदा समिति और खासकर भारतीय नेतृत्व भारतीय लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रन्थ की मौलिकता, स्वरूप और स्मृतियों को अक्षुण बनाए रखने के लिए उसे उसी हस्तनिर्मित साजसज्जा के साथ हूबहू प्रकाशित करना चाहता था।

उस दौर में आज की तरह उन्नत तकनीक (ऑफसेट) नहीं थी। लिहाजा जब संविधान के प्रकाशन की बारी आई तो इस काम को संविधान सभा ने सर्वे ऑफ इंडिया को सौंप दिया, जिसका मुख्यालय देहरादून में था। देहरादून के नॉदर्न प्रिंटिंग ग्रुप में पहली बार इसकी एक हजार प्रतियां प्रकाशित की। इसे फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया। इसी तकनीक से सर्वे ऑफ इंडिया नक्शे भी बनाता है। हाथ से लिखी गई मूल प्रति नई दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में मौजूद है, जबकि यादगार के तौर पर संविधान की एक प्रति संसद के पुस्तकालय में तो एक अन्य प्रति आज भी देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया के म्यूजियम में सुरक्षित है।

दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा (सक्सेना) ने इसे इटेलिक स्टाइल में बेहद खूबसूरती से लिखा था जबकि शांति निकेतन के कलाकारों ने इस दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ को बहुत ही दक्षता से सजाया-संवारा था। प्रत्येक पृष्ठ पर टेक्स्ट विंडो के नीचे बाईं ओर प्रेम के रूप में सुलेखक के नाम पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इलस्ट्रेटर का नाम प्रत्येक सचित्र पृष्ठ फ्रेम के नीचे बाईं ओर हस्ताक्षरित है। पांडुलिपि एक हजार साल की मियाद वाले सूक्ष्मीजीवी रोधक 45.7 सेमी × 58.4 सेमी आकार के चर्मपत्र शीट पर लिखा गया था। तैयार पांडुलिपि में 234 पृष्ठ शामिल थे जिसका वजन 13 किलो था।


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