ये पूरा किस्सा है साल 1971 का जब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ था इस युद्ध में दोनों तरफ से सैकड़ों सैनिकों की मौत हो गयी थे पर भारतीय जावानों ने इस युद्ध में पाकिस्तान को इस तरह से शिकस्त दी थी कि उन्हें हमारी फौज के आगे समर्पण करना पड़ा था। उत्तराखंड ने भी इस युद्ध में अपने कई लालों को खोया था इन्हीं में से एक वीर की कहानी यहाँ आपको बता रहे हैं जो लाल अपनी माटी के लिए 1971 में शहीद हो गया था पर वो शहीद होने से पहले 12 दुश्मनों को मारकर ही वीरगति को प्राप्त हुआ था। इसी साल यानी 1971 में ही उसकी शादी हुई थी और शादी के दो दिन बाद ही वो जवान ड्यूटी पर बॉर्डर चला गया।
उस वक्त जब वो घर से निकला तो फिर कभी वापस अपने घर नहीं लौटा था घर आयी थी तो बस एक कंबल, एक मच्छरदानी और कुछ अस्थियां। उस दौरान शहीद के घर में उसकी कोई तस्वीर भी नहीं थी तो वीर शहीद की पत्नी अब तक अपने शहीद पति की तस्वीर नहीं देख पाई थी। यूं समझ लीजिए कि शादी के दो दिन तक ही उसने अपने पति को देखा था और इसके बाद से लगभग 47 सालों का एक लंबा वक्त गुजर गया अब जाकर उसने अपने पति की तस्वीर देखी है। ये कहानी है शहीद गाड्र्समैन सुंदर सिंह और उनकी पत्नी अमरा देवी की। सैनिक कल्याण बोर्ड उत्तरकाशी और जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने कोशिश की तो अमरा देवी को उनके शहीद पति की तस्वीर मिल सकी।
उत्तरकाशी जिले के डुंडा ब्लॉक के पटारा गांव के निवासी थे गार्ड्स मैन सुंदर सिंह पर देश के लिए शहीद होने के बाद जिले के इस शहीद की तस्वीर कई दशकों तक उपलब्ध नहीं थी, जिस कारण प्रति वर्ष बिना तस्वीर के ही उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की जाती थी। सुंदर सिंह 21 साल की उम्र में ही देश की रक्षा करते करते शहीद हो गए थे, वहीं अमरा देवी ने भी त्याग और बलिदान की एक अमर कहानी लिखी है। 21 साल की उम्र में अमरा देवी विधवा हो गई थीं। अगर उस वक्त अमरा देवी चाहती तो शादी कर सकती थीं और नया संसार बसा सकती थीं लेकिन उन्होंने अपना परिवार नहीं छोड़ा पति की शहादत को 47 साल बीते और वो बस उनकी यादों के सहारे जिंदा हैं।