उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करके भारतीय जनता पार्टी ने अब एक साथ कई निशाने साधे हैं। यह साफ है कि जैसा भाजपा और उसके तमाम बड़े नेता दावा करते रहे हैं कि सांविधानिक संकट की स्थिति के कारण यह निर्णय लेना पड़ा इस बात में दम नजर नहीं आता है। क्यूंकि इससे पहले भी तमाम ऐसे उदाहरण हैं जहाँ इन्हीं हालातों में उप चुनाव कराये गए हैं। तो वास्तव में यह सांविधानिक नहीं बल्कि पार्टी का भीतरी रणनीतिक संकट भर था। यह इस बात को भी दर्शाता है कि भाजपा ने प्रचंड बहुमत के बाद और कोई विशेष कारण न होने के बावजूद बार-बार मुख्यमंत्री बदले हैं।
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सबसे बड़ा कयास तो पहले यह लगाया जा रहा है कि चुनाव जीतने पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अपनी सीट पर बने रहते। तो इसी तरह बंगाल में भी उप चुनाव कराने होते तो फिर ममता बनर्जी चुनाव जीतकर आ जाती। उधर, उत्तराखंड का फॉर्मूला बंगाल में लागू कर ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से बेदखल करने की कथित कोशिश की अटकलें लगाई जा रही हैं। उतराखंड में अपने सीएम की बलि चढ़ाकर अब बंगाल में चुनाव न करवाने की राह खुल गई है। ममता को नवंबर प्रथम सप्ताह तक कोई उपचुनाव जीतना जरूरी है वरना उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा।
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दूसरा अहम कारण यह नजर आ रहा है कि खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाकर भाजपा ने तराई को साधने की कोशिश की है। दरअसल, पिछले दो विधानसभा चुनावों में ऊधमसिंह नगर की नौ विधानसभा सीटों में से भाजपा के सर्वाधिक आठ-आठ विधायक विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन, पिछले साल शुरू हुये किसान आंदोलन के बाद जिले में असंतोष बढ़ता नजर आने लगा था। ऐसे में तराई से सीएम की घोषणा करने की भाजपा की इस पहल को किसान बहुल जिले की सीटों पर कब्जा बनाये रखने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
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तीसरा बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि तीरथ सिंह रावत बेहद मिलनसार और सहज उपलब्ध सीएम थे लेकिन सीएम बनने के बाद से उनके विवादित व गैर जरूरी बयानों के कारण पार्टी असहज महसूस कर रही थी। माना जा रहा है कि पार्टी को गंगोत्री से उनके चुनाव जीतने और इन हालात में फरवरी में राज्य के चुनाव में पार्टी की जीत पर भी संशय होने लगा था। रावत के तीन दिन के दिल्ली प्रवास के दौरान एक बार तो उपचुनाव का मन बना, लेकिन बाद में परिवर्तन का फैसला हुआ। पार्टी नेतृत्व को इस बात का भी डर था कि चुनाव के दौरान तीरथ सिंह रावत का कोई अटपटा बयान देकर नई मुसीबत न खड़ी कर दें।
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मई के पहले सप्ताह में जब पांच विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तब भाजपा ने एक बार फिर से अपनी भावी चुनावी तैयारियों की समीक्षा की। इसमें उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड दोनों को शामिल किया गया। उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन को जरूरी समझा गया और उसके लिए पार्टी नेतृत्व में नए नेता की तलाश शुरू कर दी। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी नई टीम आ गई थी और उसकी सलाह के बाद पुष्कर सिंह धामी का नाम उभरा।