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जानिये डीएम मंगेश घिल्डियाल की फिल्म कथा जैसी कहानी जिनकी पूरी दुनियां है दीवानी

वैसे तो हम अक्सर ये बात हमने बॉलीवुड की 80-90 की फिल्मों में ही देखी है कि कैसे एक गरीब माँ बाप का बेटा बचपन से ही जी जान से मेहनत में लगा रहता है और उसके बाद वो जब बड़ा होता है खुद तो सफल हो जाता है और बाकी जनता की भलाई में अपना पूरा जीवन खफा देता है। ऐसी ही एक रियल कहानी से हम आपको यहाँ रूबरू करा रहे हैं।

जिंदगी में हर इंसान चाहता है कि उसका नाम हो पैसा हो शोहरत हो और अगर किसी का ये सपना है तो वो  ब्यूरोक्रेट  बनाना जरुर चाहेगा, क्यूंकि ब्यूरोक्रेट बनने के बाद आसानी से ये सब सपने पूरे हो सकते हैं। ब्यूरोक्रेट के पास आज के समय में सब कुछ है, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि अधिकांश ब्यूरोक्रेट अकर्मण्य बन जाते हैं और कुर्सी का सुख भोगने में लग जाते हैं और उन्हें जनता की दुःख परेशानियों से कोई भी लेना देना नहीं रहता है। लेकिन हम यहाँ जिस  ब्यूरोक्रेट  की बात कर रहे हैं उनका आज के समय में ऐसा रुतबा है कि पूरा देश उनका दीवाना बना हुआ है। बल्कि बात तो यहाँ तक है कि जब पिछले साले उनका तबादला बागेश्वर जिले से से रुद्रप्रयाग जिले में किया गया तो उनके तबादले के को रोकने के लिए पूरे बागेश्वर की जनता सड़कों पर उतर आई। और अब पिछले साल भर के भीतर वो पूरे रुद्रप्रयाग जिले की जनता को अपना दीवाना बना चुके हैं, कभी वो शिक्षक बनकर बच्चों को पढाते हैं, कभी सरपंच बनकर गाँव में ही चौपाल लगाकर जनता की परेशानियां दूर करते हैं, कभी वो युवाओं को रोजगार से जोड़ने में जी जान से लगते हैं और कभी वो जनता का मनोरंजन करने के लिए संगीतकार भी बन जाते हैं, ऐसा तो सब एक फ़िल्मी हीरो में ही होता है और ये डीएम मंगेश घिल्डियाल किसी हीरो से कम नहीं हैं बल्कि अब तो उनकी पहचान पूरे देश भर में सिंघम के रूप में भी होती है।

प्राइमरी स्कूल से साइंटिस्ट तक का सफ़र

डीएम मंगेश घिल्डियाल की कहानी भी एक आम उत्तराखंडी बच्चे की तरह ही है, उनके पिता जहाँ एक ओर प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं और माता गृहणी हैं। मंगेश की प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय डांडयू गांव से ही हुई। इसके बाद गांव से पांच किमी दूर हर दिन जाकर उन्होंने राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय पटोटिया जाते थे हाई स्कूल करने के बाद फिर 12वीं राजकीय इंटर कॉलेज रामनगर से की और बीएससी के बाद एमएससी फिजिक्स डीएसबी कैंपस नैनीताल से किया। उस समय मंगेश के साथ साथ उनके दो और भाई भी बाहर रहकर पढाई कर रहे थे जिसके कारण घर में पैंसों की तंगी आ रही थी तो मंगेश ने कोशिश थी कि कहीं न कहीं जॉब लग जाए उसके बाद उन्होंने उस समय गेट का एग्जाम दिया इसमें सेलेक्शन होने के कारण इंदौर से एमटेक किया और लेजर साइंस से एमटेक किया तो फाइनल इयर में डीआरडीओ में साइंटिस्ट के रूप में तैनाती मिल गयी। और उनकी पहली पहली पोस्टिंग देरादून में आईआईआरडी लैबोरेट्री में हुई।

साइंटिस्ट से आईपीएस का सफ़र

मंगेश की पहले से ही इच्छा थी कि सिविल सर्विसेस में जाना है, तो जब उनकी जॉब लग गयी तो उन्होंने एहसास हुआ कि अब तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। जब मंगेश की देहरादून में पोस्टिंग हुई तो उस समय देहरादून में कोचिंग सेंटर का माहोल बहुत अनुकूल नहीं था सिविल सेवा आईएएस की तैयारी कोई संस्थान नहीं कराता था। जिसके कारण उन्होंने खुद कुछ बुक स्टडी की, फिर गाइडेंस लिया। और पहली बार में 131वीं रैंक के साथ आईपीएस में सेलेक्शन हुआ।

और अब जब वो आईपीएस बन गये तो खुद बहुत ही युवा हैं और साथ ही जोशीले भी तो कुछ हटकर करने का जज्बा भी। शायद यही कारण है कि बागेश्वर के डीएम रहते हुए उन्होंने वहां के युवाओं को निशुल्क सिविल सर्विस की तैयारी करानी शुरू कर दी थी। वो अपने ऑफिस से समय निकालकर खुद युवाओं को कोचिंग देने पहुँच जाते हैं। साथ ही वो जनता से जुडी हर छोटी बड़ी समस्या का तुरंत निवारण करने में भी हमेशा आगे रहते हैं और क्षेत्र के विकास में भी लगातार सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और साथ ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट नयी केदारघाटी के निर्माण में जी जान से लगे हुए हैं ताकि साल 2018 में जब केदारनाथ भगवान के कपाट खुलें तो लोगों को एक नयी केदारपुरी के दर्शन हो सकें।


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