भारत की स्वतंत्रता और पाकिस्तान के जन्म के 75वें वर्ष में नैनीताल और अल्मोड़ा से पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण रिश्ता याद करने लायक है, जिसे इतिहासकारों ने कभी महत्व नहीं दिया और आम लोगों को इसकी ज्यादा जानकारी ही नहीं है। यह बेहद रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं कुमाऊंनी मूल के परिवार में अल्मोड़ा में जन्मी और नैनीताल में प्रारंभिक शिक्षा पाने वाली आईरीन पंत के। आईरीन पंत ने पाकिस्तान की स्थापना के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। मदर ऑफ पाकिस्तान और पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी बनने, राजदूत, गवर्नर और कुलाधिपति बनने से लेकर पाकिस्तान के विकास और महिलाओं के हालात में सुधार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आईरीन को भारत रत्न के समकक्ष पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान निशान-ऐ-पाकिस्तान भी मिला।
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आइरीन पंत का जन्म 1905 में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर में हुआ था। आइरीन पंत के दादा ने साल 1887 में ईसाई धर्म अपना लिया था। उससे पहले ये परिवार उच्च ब्राहम्ण परिवार था। आइरीन पंत का शुरुआती बचपन अल्मोड़ा में ही गुजरा। जिसके बाद वह लखनऊ चली गईं और लखनऊ के लालबाग स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने लखनऊ के मशहूर आईटी कॉलेज से पढ़ाई की. बेगम लियाकत अली खान की आधी जिंदगी भारत में गुजरी और आधी जिंदगी पाकिस्तान में. वह बचपन से खुले विचारों वाली महिला थी। पाकिस्तान जाने के बाद उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तीकरण के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने साथ ही वहां मौजूद कट्टरपंथियों के खिलाफ भी आवाज उठाई।
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आईरीन पंत प्रतिभाशाली थीं और सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं थीं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी वे पूरी लगन से सक्रिय रहीं। उन्होंने 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लियाकत अली का उत्तेजक भाषण सुना तो उनके प्रति आकर्षित हुईं। 1933 में दोनों ने विवाह कर लिया, हालांकि लियाकत अली पहले से विवाहित और एक पुत्र के पिता थे। विवाह के लिए आईरीन ने इस्लाम धर्म अपना लिया और राना लियाकत अली कहलाई जाने लगीं। उनकी जीवनी की लेखिका दीपा अग्रवाल और पाकिस्तान की तहमीना अजीज अयूब की पुस्तकों में उल्लेख है कि पाकिस्तान की स्थापना के बाद लियाकत अली और दो पुत्रों अशरफ और अकबर के साथ वे पाकिस्तान चली गईं। लियाकत के प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें पाकिस्तान की प्रथम महिला के साथ ही लियाकत मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मामलों की मंत्री का दर्जा भी मिला।