Home उत्तराखंड देवभूमि में अनोखी परम्परा: मरोज पर्व में विवाहित लड़कियों को बांटा न...

देवभूमि में अनोखी परम्परा: मरोज पर्व में विवाहित लड़कियों को बांटा न भेजा तो….

जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी अनूठी संस्कृति और मेहमाननवाजी के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थानीय स्तर पर कई त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से एक महीने तक मनाया जाने वाला माघ मरोज प्रमुख है। इन दिनों पर्व के कारण पूरा क्षेत्र जश्न में डूबा हुआ हुआ रहता है। पर्व की मान्यता है कि जब तक पूरे परिवार के सदस्य घर नहीं पंहुचते तब तक घर में पाले गए बकरे को देवता को नहीं चढ़ाया जाता। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति घर न आ पाए तो उससे अनुमति लेकर बकरे चढ़ाए जाते हैं। वहीं, किसी घर में यदि कोई घटना या अनहोनी हुई है तो उस घर में गांव के लोग माघ माह के पाले गए बकरे को देवता को चढ़ाते हैं।

मरोज पर्व में विवाहित लड़कियों को बांटा भेजना जरूरी होता है। बांटा न भेजने पर रिश्ते टूट जाते हैं। बांटे के रूप में बकरे का मीट भेजना अनिवार्य होता है। आजकल जौनसार-बावर में प्रमुख पर्व मरोज की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पर्व के दौरान पूरे एक माह तक हर गांव के पंचायती आंगन में लोक संस्कृति की झलक दिखेगी। 11 व 12 जनवरी से पूरे माह तक चलने वाले मरोज पर्व के लिए बकरों की खरीदारी तेज हो गई है।  साहिया क्षेत्र में आजकल बकरों की खूब बिक्री हो रही है। पर्व को देखते हुए चमड़ा व्यापारी भी सक्रिय हो गए हैं। इस पर्व पर चमड़ा व्यापारियों को आसानी से बहुतायत में खाल मिल जाती है।

पर्व की शुरुआत हनोल कैलू मंदिर में चुरांच का बकरा कटने से होती है। एक माह तक पंचायती आंगनों में हारुल, तांदी नृत्यों का दौर चलता है। इस परम्परा में सबसे ख़ास यही है कि मरोज पर्व पर परिवार की विवाहित लड़की को उसकी ससुराल में जाकर बकरे का हिस्सा बांटे के रूप में पहुंचाना जरूरी होता है। विवाहित लड़की के ससुराल बांटा न पहुंचने पर दोनों परिवारों का रिश्ता समाप्त माना जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here