उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद यह पहला मौका है, जब किसी चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन के रूप में सामने आ रहे हैं। फर्क सिर्फ यह है कि उत्तराखंड में बसपा खुद 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो वहीँ सपा को सिर्फ एक सीट दी गयी है। सीटों के बंटवारे में पौड़ी लोकसभा सीट सपा के खाते में गई है, जबकि टिहरी, हरिद्वार, नैनीताल और अल्मोड़ा सीट पर बसपा के उम्मीदवार खम ठोंकेगे। पर यहाँ उल्लेखनीय बात यह है कि जिन मैदानी सीटों हरिद्वार और नैनीताल पर सपा और बसपा दोनों का अच्छा खासा जनाधार रहा है वो दोनों सीटें बसपा के खाते में गयी हैं। पौड़ी लोकसभा सीट सपा के हिस्से में जाने के पीछे राजनीतिक विश्लेषक एक बड़ी वजह गढ़वाल क्षेत्र में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की ससुराल को मानकर चल रहे हैं।
उत्तराखंड की सियासी स्थिति देखें, तो भले ही सपा-बसपा मजबूत नहीं दिखते, लेकिन चुनावी इतिहास देखें तो पता चलता है कि दोनों दलों के पास उपलब्धि बताने लायक तथ्य जरूर मौजूद हैं। इस बार एक-एक सीट पर तयशुदा माने जा रहे घमासान के बीच इस स्थिति में भाजपा जरूर थोड़ा मुस्कुरा सकती है और वहीँ कांग्रेस को जरुर और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा ये निश्चित है। उत्तराखंड के चुनावी इतिहास को देखें, तो विधानसभा चुनाव में सपा कभी भी अपना खाता नहीं खोल पाई है और यही स्थिति बसपा की लोकसभा चुनाव के संबंध में रही है। हालांकि एक दिलचस्प तथ्य ये है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा ने हरिद्वार सीट पर विजय पताका फहराई थी। पर इसके बाद भी जिस तरह से हरिद्वार सीट बसपा के खाते में चली गयी उससे राजनीतिक चिंतक हैरान हैं।
विधानसभा चुनाव की बात करें, तो बसपा का चुनावी इतिहास उपलब्धि से भरा रहा है, जब वह 70 की विधानसभा में अपने आठ विधायक भेजने में सफल रही थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने आठ सीटें जीती थीं। बसपा को उत्तराखंड में नए जिले बनाने का श्रेय भी जाता है। राज्य गठन से पहले यूपी की सीएम रहते हुए मायावती ने रुद्रप्रयाग, ऊधमसिंह नगर जैसे जिलों का निर्माण किया था। आपको बता दें नब्बे के दशक में वर्तमान कैबिनेट मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत बसपा के साथ रहे हैं।