उत्तराखंड सरकार ने गत सितंबर में भारतीय वन सेवा से रिटायर्ड अधिकारी एसएस नेगी के नेतृत्व में उत्तराखंड पलायन आयोग का गठन कर पलायन की असल स्थिति और कारण जानने की दिशा में पहल की थी। उत्तराखंड पलायन आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। प्रदेश भर में करीब 7000 ग्राम पंचायतों में सर्वे के आधार पर तैयार 84 पन्नों की इस रिपोर्ट में छह पहाड़ी जिलों के 30 विकासखंडों में ज्यादा पलायन होने की बात सामने आई है। रिपोर्ट के हिसाब से पहाड़ अब नेपाल बनने वाला है। यहां से पहाड़ी पलायन कर रहे हैं, जबकि नेपाली बस रहे हैं। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में पलायन की मिली-जुली तस्वीर सामने आई है। रिपोर्ट में जहां छह पहाड़ी जिलों के 30 विकास क्षेत्रों को पलायन से ज्यादा प्रभावित बताया गया है वहीं कई जगह रिवर्स पलायन की बात भी कही गई है।
रिपोर्ट में पलायन के चलते पहाड़ में डेमोग्राफिक बदलाव का भी उल्लेख किया गया है। पिथौरागढ़, चंपावत जैसे जिलों में हाल के समय नेपाल से आए मजदूरों की संख्या काफी बढ़ी है, नेपाली मजदूर अब स्थायी रूप से पहाड़ों में रहकर खेती-बाड़ी को अपनी आजीविका का साधन बना रहे हैं। पहाड़ के स्कूलों में नेपाली मजदूरों के बच्चों की अच्छी संख्या हो चली है। वहीं भवन निर्माण के साथ ही छोटे-मोटे कारोबार करने के लिए उत्तराखंड से सटे वेस्ट यूपी के जिलों और बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग पहाड़ों में रहने लगे हैं। जबकि यहां के मूल निवासी लगातार पलायन कर रहे हैं। जो साफ तौर पर डेमोग्राफिक बदलाव की वजह है।
रिपोर्ट में पहाड़ के कई गांवों का पूरी तरीके से भुतहा (जहां एक भी इंसान नहीं रहता) का उल्लेख किया गया है सूत्रों के मुताबिक ऐसे गांव की संख्या 1000 से कुछ कम है। 2011 की जनगणना के बाद भी कई गांव खाली हो गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि जिन जिलों में प्रतिव्यक्ति आय कम है, वहाँ ज्यादा पलायन हुआ है। नतीजों तक पहुंचने के लिए आयोग ने जनसंख्या और सरकार के आर्थिक आकंड़ों से भी पलायन की तुलना की है।