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उत्तराखंड में जन्मा दुनियां का सबसे बड़ा शिकारी जिम कॉर्बेट, फिर उन्हें ही बचाने क्यों लगे ?

19वीं सदी का माहौल भारत के उत्तराखंड और नेपाल के लिए बहुत ही बुरा था, क्यूंकि उस दौरान लोग नरभक्षी और बाघों के डर से अपने घर से कहीं निकलते ही नहीं थे तो लोग इसी खौफ के साये में जीने को मजबूर थे। 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में क्रिस्टोफर विलियम कार्बेट मैरी जेन के घर पर एक बच्चे का जन्म हुआ जिनका नाम रखा गया जिम एडवर्ड कार्बेट का, कुल 16 भाई-बहनों में जिम का नंबर 8वां था। जिम की प्रारम्भिक शिक्षा नैनीताल के ही ओपनिंग स्कूल में हुई और उसके बाद में उन्हें सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्होंने बीच में ही पढाई छोड़ दी और 18 वर्ष की उम्र में रेलवे में नौकरी करने लगे।

जिम ने अपने जीवन का अधिकांश समय कालाढूंगी और नैनीताल के स्थनीय ग्रामीण लोगों के बीच में ही गुजारा, पहाड़ो और जंगलों में रहने के कारण इन्हें प्रकृति और जानवरों से खासा लगाव हो गया था। उस दौर में बाघों के हत्थे तक़रीबन 1200 लोग चढ़ चुके थे, अकेले उस समय एक बाघ ऐसा भी था जो 436 लोगों को अपना निवाला बना चुका था जिसका नाम आज तक गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। उस वक़्त जिम कॉर्बेट की गिनती सबसे अच्छे शिकारियों में होती थी,  जिसके कारण उन्हें बुला लिया गया, पर जिम को जानवरों से बहुत अधिक लगाव था तो पहले उन्होंने इन सब बातों की अच्छे से रिसर्च की और उसके बाद 436 लोगों को मारने वाले बाघ का शिकार किया।

जिम ने 1907 से लेकर 1938 तक कुल 33 नरभक्षियों का शिकार किया था जिसमें 19 बाघ और 14 तेंदुए शामिल हैं। मारे गये अधिकाँश नरभक्षियों को जिम अपने साथ ले जाते थे और उनकी खाल को अपने घर में सजाते थे इसके बाद वो उनके शरीर की अच्छे से रिसर्च किया करते थे और उसके बाद वो इस नतीजे पर पहुंचे कि मारे गये अधिकाँश नरभक्षि या तो किसी बीमारी से ग्रस्त थे या फिर वो घायल थे, और घायल होने की सबसे ज्यादा वजह उनको लगी हुई गोली होती थी, यानी कि उसे किसी न किसी व्यक्ति ने मारने की कोशिश की होती थी। इन्हीं घावों और शिकार करने में असमर्थ हने के कारण वो आदमखोर बन जाते थे।

इस सारी रिसर्च के कारण जिम को ये पता चला कि सुरक्षा इंसानों को बाघों से नहीं बल्कि बाघों को इन्सानों से चाहिए। इसके बाद ही उन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए एक बड़ा कदम उठाया, इसी कड़ी में उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस में अपनी पहचान और सिफारिश लगाकर एक पार्क का बनवाया, जहां ये जीव सुरक्षित रह सकें। पहले इसका नाम हेली नेशनल पार्क रखा गया लेकिन बाद में उस पार्क का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट नाम पर ही जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रखा गया।


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