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23 नवंबर को इगास पर्व… सीएम धामी भी आग के गोले से खेलेंगे… जानिये क्यूँ मनाई जाती है

दीपावली के 11वें दिन एकादशी पर उत्तराखंड में लोकपर्व इगास यानी बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है। चलिए जानते हैं इगास पर्व क्या है और इसकी मान्यता क्या है। उत्तराखंड में दिवाली के दिन को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। जबिक कुमाऊं में दीवाली से 11 दिन बाद इगास यानी बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं। रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है।

मान्यता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर पहाड़ों में 11 दिन बाद पहुंची थी। इसीलिए लोग दीपोत्सव के 11 दिन बाद इगास (बग्वाल) मनाते हैं। इगास में भैलो खेलने की परंपरा है। हालांकि यह भी माना जाता है कि दीपावली के समय पहाड़ों में लोग खेती में व्यस्त रहते हैं। इसीलिए खेती के काम निपटाने के इगास का त्योहार मनाते हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी। दीपावली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दीपावली मनाई थी।

ईगास-बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है। बग्वाल वाले दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है। चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ एक रस्सी से बांधी जाती है। इसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।

इस बार राठ जन विकास समिति द्वारा दून विश्वविद्यालय के खेल मैदान में 23 नवंबर को इगास के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान संस्कृतिक कार्यक्रम, भैलो खेलने, रस्साकस्सी (गैड़) खेला जाएगा। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहेंगे। बता दें कि भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने ईगास पर्व की खत्म होती परंपरा को फिर से जीवंत किया है। पिछले कुछ सालों से बलूनी लगातार प्रयास कर रहे हैं, उनका यह प्रयास रंग ला रहा है।


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