उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के साए में महाकुंभ स्नान से हरिद्वार में महामारी का खतरा मंडराने लगा है। 12 से 14 अप्रैल के बीच दो शाही स्नानों के दौरान माँ गंगा में 49 लाख 31343 संतों और श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है। जिले में 1854 पॉजिटिव मरीज मिले, जो बृहस्पतिवार को बढ़कर 2483 पहुंच गए। इस दौरान कई संत और श्रद्धालु बीमार भी पड़े हैं। रुड़की विवि के वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ इससे संक्रमण का फैलाव कई गुना बढ़ने की आशंका से चिंतित हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना का वायरस ड्राई सरफेस की तुलना में गंगा के पानी में अधिक समय तक एक्टिव रह सकता है।
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ये सभी जानते हैं कि अपने उद्गम से अंत तक गंगा नदी ढाई हज़ार किलोमीटर का सफर तय करती है और इस सफर में करोड़ों लोगों को जीवन देती है। करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती है और लाखों हेक्टेयर जमीन में अन्न उपजाती है। लेकिन गंगा एक ऐसी इकलौती नदी है, जिसके पानी में विज्ञान ने कुछ अलग और कुछ खास देखा है। गंगा से बीमारी नहीं फैलती, तो ये बात आधी सही है और आधी गलत। गंगा से वाकई बीमारी नहीं फैलती, लेकिन गंगातट पर एकत्र होने और गंगा में स्नान करने से कोरोना का संक्रमण जरूर फैलता है। स्नान के दौरान एक भी संक्रमित व्यक्ति ने डुबकी लगाई तो कई लोगों तक बीमारी फैलने की आशंका है। माइक्रो बायोलॉजिस्ट का दावा है कि कोविड संक्रमण पानी में न केवल कई दिन तक एक्टिव रह सकता है, बल्कि गंगा के बहाव के साथ संक्रमण भी फैला सकता है।
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अखाड़ों से जुड़े करीब 40 संत कोविड पॉजिटिव आ चुके हैं। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि अस्पताल में हैं। महामंडलेश्वर कपिल देव दास की संक्रमण से मौत हो चुकी है। संक्रमण के फैलाव से रुड़की विश्वविद्यालय के वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप शुक्ला धर्मनगरी में लाखों की भीड़ से बेहद चिंतित हैं। 12 सदस्यीय टीम कोरोना वायरस के जमा एवं बहते हुए पानी में सक्रियता की अवधि पर रिसर्च कर रही है। डॉ. शुक्ला बताते हैं, इतना तो तय है कोरोना का वायरस ड्राई सरफेस और मेटल की तुलना में नमी और पानी में अधिक सक्रिय रहता है। पानी में सक्रियता का ड्यूरेशन कितना अधिक हो सकता है, रिसर्च के बाद खुलासा होगा।