पलायन इस समय उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। और अब इसी पलायन पर पहाड़ के कुछ युवा ऐसी शानदार चोट कर रहे हैं कि लोग सोचने पर मजबूर हो रहे हैं कि कहीं उन्होंने अपना पहाड़ छोड़कर गलती तो नहीं कर दी है। ऐसे ही एक पूर्व सैनिक से आपको यहाँ हम रूबरू करा रहा हैं जिन्होंने बंजर पड़ चुके जिन खेतों में ऊंची-ऊंची झाड़ियां उग आई थीं और वे जंगली जानवरों का ठिकाना बन चुके थे, आज वो फसल रूपी सोना उगल रहे हैं। उनकी पहल के बाद अब इन खेतों में दोबारा फसलें लहलहाने लगी हैं।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कल्जीखाल विकासखंड स्थित निलाड़ा गांव के सेना से सेवानिवृत्त बिरेंद्र सिंह रावत की यहाँ बात हो रही है। बिरेंद्र रावत सेना 31 जुलाई 2017 को हवलदार पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे। अन्य लोगों की तरह ही वह भी गांव छोड़ चुके थे और परिवार देहरादून के नवादा में बस गया था। वह शहर के जीवन से परेशान हो गए थे और गांव लौटकर माटी का कर्ज अदा करना चाहते थे। गांव आकर उन्होंने बंजर जमीन को आबाद करने की ठानी और अपने खेतों के साथ गांव छोड़ चुके अन्य लोगों की जमीन पर उगी झाड़ियों को काटना शुरू किया।
खेत आबाद किए तो जंगली जानवर मुसीबत बन गए। फसलों को बचाने के लिए उन्होंने जिले के आला अफसरों के साथ कृषि विभाग के चक्कर काटने शुरू कर दिए। नतीजतन कृषि विभाग ने आबाद की गई जमीन पर तारबाड़ करा दी। उद्यान विभाग की मदद से रावत ने करीब 20 बीघा जमीन पर आलू, मटर और मसूर की खेती की है। पांच नाली भूमि पर आम और लीची के पेड़ लगाए हैं। बंजर खेतों को खोदना शुरू किया था तब लोग उनका मजाक उड़ाते थे। अब जब मेहनत रंग लाने लगी है तो वही लोग तारीफ करते हैं। वर्षों पहले गांव छोड़ चुके लोग उनके काम को देखने वहां इस समय आ रहे हैं।