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काकभुशुंडी ताल का है अनोखा महत्व, यहां महादेव को कौवे ने सुनाई थी रामायण

जोशीमठ विकासखंड के काकभुशुंडी ताल की छटा इन दिनों पर्यटकों और श्रदालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. जिसके कारण दूर-दूर से ट्रेकर यहां पहुंच रहे हैं. उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित काकभुशुंडी ताल 4345 मीटर की ऊंचाई पर है. ये स्थान धार्मिक और पर्यटन दोनों की दृष्टि से अहम है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कौवे अपने अंतिम समय में प्राण त्यागने के लिए काकभुशुंडी ताल पहुंचते हैं.

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काकभुशुंडी ताल की यात्रा नीलकंठ, चौखम्बा और नर-नारायण की चोटियों से होकर गुजरती है. हरे घास के मैदानों, तथा कल-कल करती नदियों और अल्पाइन के जंगलों से सजते हुए, काकभुशुंडी झील तक जाने वाला ट्रेक बेहद सुकून देने वाला है. शहर के आबो हवा से दूर शांति की तलास वालों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है.

काकभुशुंडी ताल चारों उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित है. इन दिनों बरसात कम होने से ट्रैकर फूलों की घाटी के बाद काकभुशुंडी ताल भी पहुंच रहे हैं. मछली के आकार और साफ नीले पानी से भरा यह ताल अपने आप मे अद्भुत है. ताल के आमने सामने गरुड़ और कौवे के आकार के दो पर्वत भी हैं. किंवदंती के अनुसार भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का घमंड भी इसी स्थान पर टूटा था. काकभुशुंडी का ट्रैक पूरा कर चुके ट्रेकरों और स्थानीय लोगों की मानें तो काकभुशुंडी ताल के आस-पास कई कौवों के पंख गिरे हुए हैं. कहा जाता है कि कि कौवे अपने अंतिम समय मे यहां प्राण त्यागने आते हैं.

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धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काकभुशुंडी ताल के पास एक कौवे ने शिव के मुख से रामायण की कथा सुनी थी. जिसको बाद कौवे ने गरुड़ देवता को आध्यात्मिक रामायण की कथा सुनाई थी. उस दौरान वाल्मीकि ने भी रामायण की रचना नहीं कि थी. तब से ही इस ताल की अपनी अलग मान्यता है.


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