एक हफ्ते पहले जल्द लौटने का वायदा करके ड्यूटी पर गया सूरज इस हाल में लौटेगा, मां ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मां अंतिम समय में बेटे का चेहरा भी नहीं देख सकी। दरअसल, धमाके में सूरज के शरीर के चीथड़े उड़ गए थे और शरीर के कुछ अवशेष ही मिल सके थे, जिन्हें सेना के जवान बॉक्स में लेकर आए थे। मां और बहनें बॉक्स खोलने और सूरज का चेहरा दिखाने की जिद कर रहीं थीं। उन्हें समझाना मुश्किल हो गया कि सूरज को देखना अब संभव नहीं है। पार्थिव शरीर को लेकर जब जवान घर पहुंचे तो मां सीता देवी कहने लगीं कि म्यर सूरजा तू कां ल्हे गे छै (मेरे सूरज तू कहां चला गया)। मां को उसकी मौत पर भरोसा नहीं हो रहा था।
चारों ओर रुदन के बीच बदहवास हालत में जब मां ने कहा कि सूरज सोया है, अभी उठ जाएगा… तो वहां मौजूद लोग आंसू नहीं रोक सके। मां के साथ सूरज की दोनों विवाहित बहनें भी बॉक्स से लिपट गईं। सूरज कुछ माह बाद अपनी छोटी बहन राधा की शादी में आने की बात कहकर गया था। राधा भी बार-बार इसी बात को याद करके रो रही थी, जबकि छोटा भाई चंदन एक कमरे में अकेला बैठकर सुबक रहा था। दुख के तूफान को पिता नारायण सिंह ने किसी तरह थामा हुआ था और वह सूरज के फोटो को हाथ में लिए खुद को शांत रखने का प्रयास कर रहे थे। किसी को भरोसा नहीं हो रहा था कि एक हफ्ते पहले (25 नवंबर) को छुट्टी बिताकर घर से गया सूरज अब सदा के लिए अस्त हो गया है।