उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पायी जाने वाली एक ऐसी घास जिसे छूने से हर कोई डरता है चाहे वो बच्चा हो या बूडा। वहीं, दूसरी ओर यह स्वाद से लेकर दवा और आय का भी स्रोत है। जी हां, हम बात कर रहें हैं बिच्छू घास की। इससे स्थानी भाषा में कंडाली के नाम से जाना जाता है। अगर ये घास गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है, लेकिन यह घास कई गुणों को समेटे हुए हैं। इससे बने साग का स्वाद लाजवाब है, वहीं इस घास बनी चप्पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ रहे हैं। आइये जानते औषधीय गुणों से भरपूर इस घास के बारे में।
कंडाली का साग खाने के मुख्य लाभ की-
1.भरपूर मात्रा में आयरन
2.खनिज, विटामिन व औषधि का भण्डार
3.लौह तत्व की भरपूर मात्रा
4.खून की कमी पूरी करती है
5.फोरमिक ऐसिड , एसटिल कोलाइट, विटामिन ए की प्रचुर मात्रा
- गैस नाशक, आसानी से हज्म होती है
- पीलिया, पांडू, उदार रोग, खांसी, जुकाम, बलगम,गठिया रोग, चर्बी कम करने में सहायक 8.स्त्री रोग , किडनी अनीमिया , साइटिका हाथ पाँव में मोच आने पर कंडाली रक्त संचारण का काम करती है।
- कंडाली कैंसर रोधी है, इसके बीजों से कैंसर की दवाई भी बन रही है।
- एलर्जी खत्म करने में यह रामबाण औषधि है.
- कंडाली की पतियों को सुखाकर हर्बल चाय तैयार होती है।
- कंडाली के डंठलों का इस्तेमाल नहाने के साबुन में होता है।
बनाने का तरीका—
कापिली बनाने के लिए कंडाली की नई मुलायम कोपलें उपयुक्त होती है लेकिन मुलायम कोपलें तभी होंगी जब कंडाली के पौधे को हर साल काटते रहेंगे , वरना पुराना पौधा खाने लायक नहीं होता। कोपलें काटकर लाने के लिए चिमटा जरूरी हथियार है। साथ में दो मुहँ वाली डंडी और तेज दरांती। डंडी से कंडाली को दबायें और चिमटे से पकड़ें और फटा -फट दरांती से काटकर टोकरी में रखें। परन्तु सावधानी रखें कंडाली शरीर को न लगे। इन हरी कोपलों को घर लाकर अच्छी तरह झाड़कर साफ़ कर लोहे की कढ़ाही में कम पानी में अच्छी तरह ढक्कन लगाकर पकाएं। साथ में थोडा अमिल्डा की हरी पतियाँ भी पकाएं। अमिल्डा के पत्ते हल्के खट्टे होते हैं , यह स्वाद बढ़ाते हैं और संतुलन भी बनाते हैं। कई स्थानों में पकाने से पूर्व कंडाली की कोपलों को आग की तेज लौ के सामने के लिए दिखाते हैं तो उसके सुई नुमा तेज रोयें बारूद की तरह जल जाते हैं। ऐसा करने से कंडाली की कापिली ज्यादा स्वादिष्ट होती हैं। लेकिन यदि ऐसा भी न करें तब भी कंटीले रोओं का असर पकने से खत्म हो जाता है।
इस उबली कंडाली को सिल-बट्टे से पीसें या करछी से अच्छी तरह घोटें और थाली में अलग निकालकर उसमें पानी मिलाकर घोलें। इस घोल में थोडा सा आटा /बेसन या चावल का आलण (चावल की पिट्ठी ) भी अच्छी तरह मिलायें। स्व्दानुसार नमक , मिर्च डालें, थोडा सा धनिया पाउडर डाल सकते हैं। टमाटर या मसाला डालने की जरुरत नहीं है। तेल गर्म होने पर पहले उसमें जरुरत अनुसार लाल मिर्च भूनना न भूलें , मिर्च भुन कर अलग निकाल दें। अब तडके के लिए उसमें जख्या, चोरा, लहसून या हिंग डालें , और फटाफट कंडाली का घोल उसमें दाल दें , कंडाली की खुशबू से वातावरण मगक उठेगा। अब करछी से अच्छी तरह हिलाते या घुमाते रहें ताकि कढ़ाही के टेल पर न जमे। पानी अंदाज का रखें कापिली न ज्यादा पतली हो न ज्यादा गाढ़ी। अच्छी तरह पकाएं कापिली तैयार है। परोसते समय घी से ज्यादा जायका आता है और हाँ भूनी पहाड़ी करारी मिर्च भी न भूलें।
हिमालयन नेटल चाय की कीमत 290 रुपये प्रति सौ ग्राम
कंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना जाता है। जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाता है। इस चाय की कीमत प्रति सौ ग्राम 150 रुपये से लेकर 290 रुपये तक है। बिच्छू घास से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है।