उत्तराखंड में पलायन की समस्या सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है और पिछले कुछ सालों से तो इसने विकराल रूप धारण कर लिया, जिससे साल दर साल गांव के गांव वीरान होते चले गए। पिछले दस साल के आंकड़ों पर अगर गौर करैं तो हर दिन औसतन 33 लोग गांवों छोड़कर जा रहे थे। यह खुलासा खुद राज्य सरकार की रिपोर्ट में हुआ था और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खुद इसे जारी किया था। लेकिन कोरोना संकट के समय इसमें बहुत बड़ा परिवर्तन आया है और लोग वापस पहाड़ों की तरफ आ रहे हैं जिनमें 85 साल का एक दादा तो पूरे देशभर में चर्चा का विषय बन गए थे।
अब इसी कड़ी में एक नया उदाहरण उत्तरकाशी जिले से सामने आ रहा है जहाँ दो दशक पहले चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के खालसी गांव निवासी बैशाखू लाल अपना घर छोड़कर नौकरी की तलाश में चले गए थे और उनकी यह तलाश पूरी हुई पंजाब के फिरोजपुर में। फिर बेशाखू लाल ने फिरोजपुर में ही रहने को अपनी जिंदगी समझकर जीवन यापन करना शुरू कर दी और ने कभी नहीं सोचा था कि वह जिस जन्मभूमि को छोड़कर प्रदेश में नौकरी के लिए जा रहा है, आज उसी जन्म भूमि में उसे अपने स्वजनों के साथ दुबारा वापस लौटना पड़ेगा। बैशाखू लाल फिरोजपुर में किराये के मकान में रहता था। किसी तरह से वह अपने परिवार के साथ रहकर प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर परिवार को भरण पोषण कर रहा था। परिवार में उनके साथ उनकी पत्नी, तीन बेटे, दो बहू और नातियों को मिलाकर कुल 13 सदस्य हैं।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण रोजगार भी छीना और परिवार के भरण पोषण का बड़ा संकट भी पैदा हो गया था। जिसके बाद 58 वर्षीय बैशाखू लाल ने परिवार के साथ गांव लौटने का निश्चय किया। 26 मई को अपने पूरे परिवार के साथ अपने गांव खालसी पहुंच गया। जहां उनका परिवार प्राथमिक विद्यालय खालसी में पंचायत क्वारंटाइन में रह रहा है। 10 जून को उनका क्वारंटाइन का समय समाप्त हो जाएगा। अब बैशाखू लाल के सामने समस्या रहने के लिए घर की है क्यूंकि बैशाखू लाल का पैतृक घर पूरी तरह से टूट चुका है। अब बैशाखू लाल उन्होंने अपने गांव में ठेकेदार को दो कमरे बनाने का ठेका दिया है। जो करीब एक महीने में तैयार हो जाएगा। पर अब दूसरी बड़ी समस्या बैशाखू लाल के सामने रोजगार को लेकर है आखिर वह अपने गाँव में ऐसा क्या करे कि 13 लोगों का भरण-पोषण हो सके।
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