साल 2013 की आपदा को भला कौन भूल सकता है क्यूंकि ये आपदा पूरे उत्तराखंड के साथ-साथ देशभर पर भी ऐसे जख्म छोड़कर गयी थी कि जिसका असर लम्बे समय तक देखने को मिलेगा। पर इस दौरान कई खोये हुए व्यक्ति भी वापस अपने परिवार को मिले हैं कि जिसपर कभी-कभी यकीन करना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही एक नया मामला सामने आया है क्यूंकि केदारनाथ आपदा के बाद जिस पिता को परिवार ने खो दिया था, आज वह उनके सामने है। आंखों में लरजते आंसू लिए वह बोले ‘खुदा के घर देर है, अंधेर नहीं।’ वर्ष 2013 में ऊधमसिंहनगर जिले के सितारगंज से चमोली जिले के जोशीमठ मजदूरी के लिए घर से निकले जमील अहमद छह साल बाद आज अपने परिवार के साथ है।
जमील यात्रा सीजन में कई वर्षों से मजदूरी की तलाश में जोशीमठ या लामबगड़ आते रहते थे। वर्ष 2013 में भी वह लामबगड़ में मजदूरी करने लगे। वह तारीख तो जमील को याद नहीं है, लेकिन इतना याद है कि अलकनंदा का उफान इस कदर भयानक था कि वह भी उसकी चपेट में आ गए। इसके बाद क्या हुआ उन्हें नहीं पता। आपरेशन स्माइल के टीम प्रभारी उप निरीक्षक नितिन बिष्ट ने बताया कि पिछले माह पांच दिसंबर को उन्होंने गोपेश्वर स्थित वृद्धाश्रम में ऐसे लोगों के बारे में पूछा तो वहां वृद्ध के बारे में पता चला। जब बिष्ट वृद्ध से मिले तो उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि वह सितारगंज के रहने वाले हैं। बिष्ट के अनुसार वृद्धाश्रम प्रभारी कुसुम लता डिमरी ने बताया कि वर्ष 2013 में यह बुजुर्ग बाजार में घूमते मिले तो कोई उन्हें आश्रम छोड़ गया। बुजुर्ग की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। तब वह घर का पता भी नहीं बता पा रहे थे।
विगत 24 दिसंबर को कांस्टेबल चंदन नागरकोटी को बुजुर्ग के परिवार का पता लगाने के लिए सितारगंज भेजा गया था। चंदन ने बताया कि स्थानीय पुलिस से संपर्क करने के साथ ही उन्होंने जमील का फोटो सोशल मीडिया पर भी पोस्ट कर दिया। इसका असर यह हुआ के कामयाबी जल्दी मिल गई। जमील के भतीजे वसीम ने यह फोटो देखा तो अपने चाचा को पहचान गए। उन्होंने स्वजनों को सूचना दी। इस पर स्वजनों ने नागरकोटी से मुलाकात की और बताया कि वे लोग सितारगंज के पास चीनती माजरा का रहने वाले हैं। जलील के परिवार में दो बेटे और दो बेटियां हैं।