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सावन विशेष: जानिये क्यूँ प्रिय है शिव को ये महीना, भगवान भोले को सबसे प्रिय है उत्तराखंड

आज यानी 17 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो गया है। कहा जाता है कि सृष्टि के पालक भगवान विष्णु सावन शुरू होने से पूर्व आषाढ़ शुक्ल एकादशी को संसार की समस्त जिम्मेदारियों से मुक्त होकर विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं। तब भगवान विष्णु की गैरमौजूदगी में सृष्टि का संपूर्ण कार्यभार भगवान शिव ही देखते हैं। इस कालखंड में सिर्फ भगवान शिव की ही पूजा होती है, इसलिए सावन उन्हें अत्यंत प्रिय है।

वहीँ दूसरी मान्यता यह है कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया था। उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोरतप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या से पुन: मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं। यही कारण है कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं.

एक दूसरी कथाओं में यह भी वर्णित है कि समुद्र मंथन के दौरान जो हलाहल (कालकूट) विष निकला था, उसे भगवान शिव ने कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा की। लेकिन, विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया और वह ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने कैलास में उन्हें जल अर्पित किया। तब से सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक की परंपरा चली आ रही है। मान्यता हैं कि सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया हैं।

देवभूमि उत्तराखंड को शिव की भूमि कहा गया है। यहीं कैलास पर शिव का वास है और यहीं कनखल (हरिद्वार) व हिमालय में ससुराल। और उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण में ही शिव और पार्वती का विवाह भी हुआ था। आद्य शंकराचार्य के उत्तराखंड आने से पूर्व यहां शैव मत का ही बोलबाला रहा है और सभी लोग भगवान शिव के उपासक थे। आज भी शिव विभिन्न रूपों में उत्तराखंड के आराध्य देव हैं। कांवड़ यात्रा का केंद्र भी उत्तराखंड ही है। देशभर के कांवडिय़े यहीं हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख आदि स्थानों से गंगाजल लेकर सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। भगवान शिव यहां पंचकेदार के रूप में भी विराजमान हैं और महासू, जागेश्वर, बागेश्वर आदि रूपों में भी।


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