Home देश चीन बॉर्डर पर पिता का नाम देख रो पड़ी आर्मी ऑफिसर, पिता...

चीन बॉर्डर पर पिता का नाम देख रो पड़ी आर्मी ऑफिसर, पिता ने चूहे खाकर लड़ी थी लड़ाई

मां-बाप के लिए सबसे बड़ा पल वो होता है जब उनके बच्चों की वजह से उनका सीना गर्व से फूल जाता है लेकिन एक बच्चे के लिए वो लम्हा सबसे गर्व वाला होता है जब वो अपने पिता की शौर्यगाथा के दूसरे के मुंह से सुनता है। कुछ ऐसा ही हुआ युवा महिला लेफ्टिनेंट के साथ। दरअसल महिला लेफ्टिनेंट हाल ही में शैक्षणिक टूर पर जब तवांग सेक्टर के ख्यातो पोस्ट पर पहुंचीं तो पोस्ट का नाम ‘आशीष टॉप’ पढ़कर हैरान रह गई। जब उसने अधिकारियों से इस नाम के बारे में पूछा तो वो क्षण उसके लिए ठहर से गए। दरअसल ये आशीष कोई और नहीं बल्कि उनके पिता आशीष दास हैं। दास असम रेजिमेंट में कर्नल थे और अब सेना से रिटायर हो चुके हैं। महिला लेफ्टिनेंट ने उसी पोस्ट से अपने पिता को फोन लगाया और जानकारी दी कि पोस्ट उनके नाम पर है। एक अखबार से बात करते हुए आशीष दास ने बताया कि उनकी यूनिट ने साल 1986 में इस सेक्टर में अपनी अद्भुत वीरता का परिचय दिया था। उनकी यूनिट ने तब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को मात दी थी और 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चोटी पर कब्जा किया था।

दास बताते हैं कि वर्ष 1986 में अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा के काफी अंदर तक घुस आए थे। उन्होंने हेलिपैड और स्थायी निर्माण करना शुरू कर दिया था। इसके बाद भारतीय सेना के प्रमुख जनरल के सुंदरजी ने ऑपरेशन फॉल्कन शुरू किया। यह अभियान मीडिया में काफी कम आया था। इस दौरान पूरी इंफ्रैंट्री ब्रिगेड को एयरलिफ्ट करके जिमिथांग पहुंचाया गया, जो सुमदोरोंग चू वैली के पास है।दास ने कहा, ‘हमें बूम ला से अपना रास्ता बनाना था और सांगेत्सर झील पहुंचना था। चीनी सैनिक झील के उस पार बैठे थे। हमें आदेश था कि वहां मोर्चा संभालें। हमने कुछ दिन बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया और ख्याफो पहुंच गए जो उस समय बर्फ से ढका हुआ था। हमें यह नहीं पता था कि हमने न केवल चीनी शिविर को पार कर लिया है, अपनी स्थिति को भी मजबूत कर लिया है। हमें राशन पहुंचाने के लिए हवाई मार्ग से प्रयास किया गया लेकिन वह चीनी सीमा के अंदर गिर गया। हमें चूहों को खाकर जिंदा रहना पड़ा। पूरी कार्रवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच भीषण गोलाबारी हुई और जवानों को तीन दिन बिना खाने के रहना पड़ा।’जवान तीन दिनों तक भूखे रहे लेकिन हमने मोर्चा संभाले रखा। 2003 को उनको जानकारी दी गई थी कि उनके शौर्य को समर्पित उनके नाम पर पोस्ट का नाम ‘आशीष टॉप’ रखा गया है। अब बेटी को जब इसकी जानकारी हुई तो वह इस सम्मान को देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाई।