
आज 2 जून है और आपने अपने बचपन में बड़े बुजुर्गों से ये कहावत जरूर सुनी होगी की “2 जून की रोटी किस्मत वालों को ही नसीब होती है”, लेकिन क्या आप जानते है ऐसा क्योँ कहा जाता है। आइये आज हम आपको इस बारे मे बता दे आखिर क्यो 2 जून की रोटी खुशकिस्मत वालों को मिलती है। हम आपको बता दे इस मुहावरे का जून महीने से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई है।
विवि के कुलानुशासक शैलेंद्र कुमार शर्मा का कहना है की यह प्राचीन मुहावरा है जो 600 साल पहले से चला आ रहा है। यह भाषा का रूढ़ प्रयोग है। आमतौर पर किसी खास घटना को दर्शाने के मुहावरों का उपयोग किया जाता था जो आज तक प्रचलन मे है।
हास्य व्यंग्य के कवि दिनेश दिग्गज से जब पूछा गया की ऐसा क्योँ कहा जाता है, दो जून की जगह, दो मार्च या दो अप्रैल क्योँ नहीं बोलते है। तब उन्होंने कहा – क्यूंकि दो जून की रोटी से मतलब कोई महीना नहीं है, बल्कि पुराने समय मे दो जून की रोटी से आशय दो समय (सुबह-शाम) का खाना से है। सीधे शब्दों मे कहे तो कठिन परिश्रम के बाद दो समय का खाना नसीब नहीं होना। संस्कृत विद्वान शास्त्री कौशलेंद्रदास ने भी इस बात की पुष्टि की है, उन्होंने बताया है कि दो जून अवधि भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है।