22 साल की अंकिता जब जांच में एचआईवी पॉजिटिव घोषित कर दी गई, तो दुनिया उसके लिए क्रूर होती चली गई। वो गर्भवती थी, सवाल होने लगे- एचआईवी का रोग कैसे लगा? कहां से लगा? रिश्तेदारों को छोड़िए, नर्सों तक का व्यवहार बदल गया। अंकिता कब तक प्रताड़ना सहती। यूट्रस फटने के बाद अंकिता को अस्पताल लाया गया था। शरीर कमजोर था। बाकी कसर डॉक्टर-नर्सों की बेरुखी ने पूरी कर दी। अंकिता पहले कोमा में गई, फिर दुनिया से। बाद में पता चला- एक टाइपो एरर ने उसे एचआईवी पॉजिटिव बना दिया था। अंकिता के पिता और पति के शब्दों में पढ़िए कोमा में जाने से पहले अंकिता के आखिरी 48 घंटे कैसे बीते।
पिता मियां राम बोले: नर्सें आकर बेटी से पूछती थीं- ऐसा क्या करती थी जो ये रोग लगवा लिया
21 अगस्त काे राेहड़ू के संजीवनी अस्पताल में बताया गया कि अंकिता के यूट्रस ट्यूब फट गई है, खून भी कम है। इसलिए इसे शिमला ले जाना पड़ेगा। मैंने कहा- इलाज यहां भी तो हो सकता है तो डॉक्टरों ने जवाब दिया-बीमारी सिर्फ यही नहीं, और भी है। ये एचआईवी पॉजिटिव है। मै धक रह गया। अंकिता ने भी डॉक्टरों की बात सुन ली थी। वो बेहताशा रोने लगी। मैं बेटी को लेकर उसी रोज शिमला के कमला नेहरू अस्पताल पहुंचा। यहां उसके यूट्रस का ऑपरेशन हो गया। लेकिन दोबारा टेस्ट कराने के बजाय डॉक्टरों ने संजीवनी अस्पताल की रिपोर्ट को ही सही मान लिया। नर्सें आकर पूछती थीं- आखिर ऐसा क्या काम करती हो, जो ये रोग लगवा लिया। अंकिता क्या जवाब देती। बस रोती रहती। अंकिता की रिपोर्ट से हम इस कदर डरे हुए थे कि अस्पताल में पर्ची तक भरना तक मुश्किल हो गया।
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जिसे भी पता चलता- फलां बैड पर एचआईवी पॉजिटिव है, वो मेरी बेटी को अजीब नज़रों से घूरता। मानो वो कोई गुनाहगार हो। यूट्रस के ऑपरेशन के बाद वो ठीक थी। लेकिन जब नर्सों के सवाल होने लगे तो उसका खड़ा रहना भी मुश्किल हो गया। बेटी तब तक होश में थी। सब सुनती थी। कहती कुछ नहीं। अचानक लंबी सांसें लेने लगी। मैंने उसके पति हरीश को शिमला बुला लिया। 22 को ही हरीश शिमला पहुंच गया। लेकिन अंकिता ही हालत हाथ से निकलती जा रही थी। वो कोमा में चली गई। उसे शिमला के ही इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिफ्ट कर दिया गया। 23 अगस्त काे अंकिता और हरीश, दोनों के एचआईवी से जुड़े टेस्ट हुए। तब जाकर जांच में पता चला, दोनों नॉर्मल थे। पर संजीवनी अस्पताल की रिपोर्ट का झूठ जानने से पहले ही अंकिता कोमा में जा चुकी थी। 21 अगस्त की सुबह 11 बजे वाली पहली रिपोर्ट से लेकर 23 अगस्त की शाम वाली आखिरी रिपोर्ट तक अंकिता गुनाहगार बनी रही।
पति हरीश: उसके कपड़े अलग रखवाए, हमें ग्लव्स पहनाए, वो हमें देखती और बस रोती।
हमने लव मैरिज की थी। पिछले ही साल दिसंबर में शादी हुई थी। मैं 22 अगस्त को अंकिता के पास पहुंचा। स्टूल पर बैठ गया। उसने मेरे कंधे पर सिर रख दिया। अचानक नर्सिंग स्टाफ आया और अंकिता के सामने ही मुझसे कहा- आपको पता नहीं, आपकी वाइफ एचआईवी पॉजिटिव है। आपके भी टेस्ट होंगे। अंकिता के सामने ही हमसे कहा जाता- इसके कपड़े अलग रख दो। हमें भी ग्लव्स पहना दिए गए। काउंसिलिंग की बजाय कमला नेहरू अस्पताल में हमसे तरह-तरह के बेहूदे सवाल किए गए। 23 अगस्त को अंकिता जब आईजीएमसी रैफर की गई तो वहां डॉक्टर ने सहारा दिया। यहीं पर दोबारा टेस्ट हुए तो सच सामने आया। पर झूठी रिपोर्ट ने अंकिता की जान ले ली। मैं तो अब भी सोचता हूं, अगर सच सामने नहीं आता तो हम दोनों परिवारों का तो जीना मुश्किल ही हो जाता। पूरी ज़िंदगी ही सज़ा बन जाती। कौन हमसे रिश्ते रखता। बच्चों की शादियां कैसे होतीं?
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने परिवार को आश्वासन दिया है कि इस दुराचार के लिए अस्पताल और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं है। हमने जांच का आदेश दिया है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
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