प्रदेश की पहाड़ियों में शहीद हुए सचिन शर्मा की मां को क्या पता था कि एक दिन पहले जिस बेटे का कुशलक्षेम पूछ रही है, अगले ही दिन उसकी शहादत की खबर आ जाएगी। सचिन शर्मा ने शहादत से एक दिन पहले घर पर फोन किया था। मां सावित्री से बात हुई थी तो कहता कि मां, इस बार जल्दी नहीं आ पाऊंगा। सरहद पर तनाव बढ़ रहा है। दुश्मन ने दुस्साहस किया तो खत्म करके ही आऊंगा। मैं बोली- कितना दुबला हो गया है, कुछ खा पी लिया कर तो बोला कि मां दुश्मन के लिए मैं दुबला ही बहुत हूं। कहते कहते सचिन की मां बेसुध हो गई। हरियाणा के पानीपत में सनौली के गांव गोयला खुर्द निवासी सैनिक सचिन शर्मा का वीरवार को पैतृक गांव में ही राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। हजारों की संख्या में पहुंचे लोगों ने नम आंखों से उनको अंतिम विदाई दी।
उनको सलामी देने के लिए सीमा के जवान और अधिकारी पहुंचे। सचिन शर्मा के छोटे भाई साहिल ने बड़े भाई को मुखाग्नि दी। साहिल ने उनकी तरह फौज में भर्ती होने का प्रण लिया।जाट रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल कमल सिंह ने बताया कि सचिन की खेलों में रुचि थी। वह राजपुताना राइफल बटालियन की कबड्डी टीम का प्रमुख खिलाड़ी था और स्टार रेडर भी था। कई बार उसको सेना के अधिकारियों ने खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन पर सम्मानित भी किया था। सचिन शर्मा हर वक्त चुस्त रहता था और ड्यूटी के प्रति पूरी तरह ईमानदार। उन्होंने कभी उसे ड्यूटी से जी चुराते नहीं देखा।सचिन को पिता सुरेंद्र कुमार शर्मा बार बार शादी करने को कह रहे थे, लेकिन एक ही जवाब मिलता था कि पहले छोटी बहन अंजू व भाई साहिल को पढ़ा लिखा दूं अगर अब शादी करवा ली और मैं शहीद हो गया तो आप पर बहू की जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। सचिन अपने इरादे पूरे करने से पहले ही सोमवार की रात को अरुणाचल प्रदेश में शहीद हो गया। बुधवार शाम 6 बजकर 20 मिनट पर सेना उनके पार्थिव शरीर गांव पहुंचा। 2016 में नवंबर में झज्जर में हुई आर्मी की ओपन भर्ती में चयन हुआ था।
13 दिसंबर 2016 को यूपी में ट्रेनिंग शुरू की थी।अक्टूबर में ट्रेनिंग पूरी कर 15 दिन की छुट्टी घर आया था। नवंबर में पहली पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुई थी। 5 फरवरी को उसकी 15 दिन की छुट्टी भी मंजूर हो गई थी। सचिन तीन चार दिन में घर पर फोन कर बात करता था। बीत दिनों छुट्टी आए सचिन ने घर खर्च चलाने के लिए अपना एटीएम कार्ड पिता को दे दिया था। उसने कहा था कि उसकी ऐसी जगह पर ड्यूटी है जहां पैसों की जरूरत नहीं पड़ती। एक दौर वो था जब स्पोर्ट्स जूते खरीदने को पैसे नहीं थे, यमुना नदी में नंगे पैर दौड़ता था. मोहित और सोनू ने बताया कि उनका दोस्त सचिन शर्मा बचपन से ही मेहनती थे। उनका सपना फौजी बनने का था। उसने अपना सपना पूरा करने के लिए दौड़ की प्रैक्टिस के लिए उसके पास जूते तक नहीं थे। उन्होंने जूते खरीदवाने की बात कही तो उसने इनकार कर दिया। वह सड़क की बजाय यमुना नदी के अंदर रेतीली भूमि में दौड़ा और रेस की प्रैक्टिस की। वह मेहनत कर दो साल में ही सेना में भर्ती हो गया।