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उत्तराखंड: माँ के इलाज के लिए घर आ रहे जवान की मौत, सैन्य सम्मान संग दी अंतिम विदाई

उत्तराखंड वीर सपूतों के वीरता की दास्तान सबसे अलग है। अपने प्राणों की परवाह किए बिना देश की रक्षा के लिए कुर्बान हो जाना उत्तराखंड के वीर जवानों का जुनून है। 2018 में लगातार एक के बाद एक सैनिकों के शहीद होने की खबर आई.. वहीं भारतीय के जवान औऱ उत्तराखंड के निवासी हरीश चंद्र सिंह बिष्ट के साथ जो हुआ उससे आपका भी दिल भर आएगा. मां का इलाज कराने बागेश्वर आ रहे भारतीय सेना के जवान की हापुड़ में हार्ट अटैक से मौत हो गई। हापुड़ में पोस्टमार्टम के बाद शव यहां पैतृक आवास लाया गया। शव घर पहुंचा तो कोहराम मच गया। जवान को अंतिम विदाई देने शव यात्रा में भीड़ उमड़ पड़ी। सैन्य सम्मान के साथ संगम पर जवान की अंत्येष्टि हुई।

बागेश्वर के बोर गांव निवासी हरीश चंद्र सिंह बिष्ट (48) डिफेंस सिक्योरिटी कोर (डीएससी) में लेह में कार्यरत थे। पिछले दिनों मां पार्वती देवी की तबियत खराब होने पर हरीश छुट्टी लेकर बागेश्वर आ रहे थे। सोमवार 27 अगस्त की देर रात रानीखेत-काठगोदाम एक्सप्रेस में दिल्ली-हापुड़ के बीच उनकी तबियत बिगड़ गई। उन्हें हार्ट की बीमारी थी। रात करीब ढाई बजे टीटी टिकट चेक करने पहुंचा तो जवान को बेसुध पाया। इसके बाद जवान को एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

मंगलवार को सेना की एक टुकड़ी जवान का शव लेकर यहां पैतृक आवास पहुंची। जवान का शव देख घर पर कोहराम मच गया। बदहवास, रोती-बिखलती मां पार्वती और पत्नी गीता को लोगों ने सांत्वना दी। जवान की मौत की खबर फैली तो घर पर शोक संवेदना जताने वालों का तांता लग गया। इसके बाद घर से शव यात्रा निकाली गई। अंतिम यात्रा में क्षेत्रवासियों की भीड़ उमड़ पड़ी। संगम पर कौसानी सिग्नल कोर के जवानों ने सलामी दी। जवान की सैन्य सम्मान के साथ अंत्येष्टि की गई। चिता को बेटे सुनील और मनोज ने मुखाग्नि दी। उनका बड़ा बेटा 22 और छोटा 19 साल का है।

डीएससी के जवान हरीश भारतीय सेना में दूसरी नौकरी कर रहे थे। इससे पहले वह कुमाऊं रेजीमेंट में कार्यरत थे। वर्ष 2016 में हवलदार के पद से सेवानिवृत्ति के बाद वह डीएससी में चले गए। यहां बोरगांव स्थित पैतृक घर पर मां, पत्नी और दो बेटे रहते हैं। पिता का कुछ बरस पहले देहांत हो गया था। उनके पिता भी भारतीय सेना में थे।


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