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महाशिवरात्रि कल: कैसे भोलेनाथ के केदारनाथ से रामेश्वरम तक सारे मंदिर एक ही रेखा में बने हैं?

कल यानी 20 फरवरी को पूरे भारत में महाशिवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनायी जायेगी। शिवरात्री सनातन धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार है और ये फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में चतुर्दर्शी को आता है, इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्यूंकि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। और माना जाता है इस दिन भोले अपने भक्तों के बहुत ही ज्यादा समीप आ जाते हैं और उनकी सारी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

भारत एक बहुत ही बड़ा देश है, और उससे भी पुरानी है इस देश की संस्कृति, विचार और विज्ञान जो अनादिकाल से ही पूरे विश्व में फैला हुआ है। आज से हजारों साल पहले भी भारत में वो ज्ञान था जो अब तक भी दुनियां को नसीब नहीं हुआ है, आज विज्ञान भले ही बड़े बड़े दावे करता हो लेकिन भारत के ज्ञान और विज्ञान ने हजारों साल पहले ही वो ऊँचाइयाँ छुई हैं जहाँ तक पहुँच पाना लगभग असंभव है, और इस ज्ञान का सबसे बड़ा उदाहरण है उत्तर में स्थित भगवान केदारनाथ का मंदिर तो वहीँ सुदूर दक्षिण में  स्थित भगवान रामेश्वरम का भौगोलिक दृष्टि से 79°E,41’,54” देशांतर रेखा पर स्थित होना।

जिसके कारण यह सवाल उठाना जायज है कि क्या प्राचीन हिंदू ऋषियों के पास कोई ऐसी तकनीक या ज्ञान था, जिसके कारण से उन्होंने भौगोलिक अक्ष को मापा और इन सभी आठ शिव मंदिरों को एक सीधी रेखा पर बना दिया। पर अगर गौर करैं तो ऐसा बिना विज्ञान के होना संभव ही नहीं है क्यूंकि ये सारे शिव मंदिर एक दूसरे से लगभग 500 से 600 किलोमीटर की दूरी पर हैं और बिना तकनीकि के ऐसा हो पाना संभव ही नहीं है। ये आठों शिव मंदिर क्रमशः केदारनाथ मंदिर(उत्तराखंड ), कलेश्वरम – कलेश्वरा मुक्तेश्वर स्वामी मंदिर (तेलंगाना), श्री कलाहस्ती – श्री कलाहस्तेश्वरा मंदिर (आंध्र प्रदेश ), कांचीपुरम – एकाम्बरेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), थिरुवनैकवल – जंबुकेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), तिरुवन्नैमलाई – अन्नामलाइयर मंदिर (तमिलनाडु ), चिदंबरम – थिल्लई नटराज मंदिर (तमिलनाडु) , रामेश्वरम – रामानाथस्वामी मंदिर (तमिलनाडु) हैं।


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