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।। जन्मपत्री सबून बांची, कर्म नी बांची केन ।। पढिये उत्तराखंडी ओखाणे बुधि बोडा जी के साथ

मुझे आज बी याद है जब हम छान्नी ( केदारनाथ मंदिर से 4 Km पहले ) मे बोडा जी के साथ बैठे रहते थे! वो अक्सर हमें अपनी जिन्दगी से जुडी तमाम बाते बताते है! वो पिछले 60 सालो से केदारनाथ धाम मे कपाट खुलते ही आ जाते है. जहा लोग इस उम्र मे आधा मील बी नहीं चढ़ पाते वो आज बी केदारनाथ की चढ़ाई आसानी से कर देते है!  आपदा के समय बी ये वही पे थे उस दिन की आप बीती हमें अक्सर बताया करते है. वो एक पालसी है और कपाट खुलते ही अपनी गाय बकरियों के साथ वहा आ जाते है. यहाँ मे आज आपको उनके द्वारा कही गई कुछ ओखाणे बताने जा रहा हु. अगर आप बी उत्तराखंडी हैं तो आपने ये ओखाणे पहले जरुर सुनी होंगी !

।। जन्मपत्री सबून बांची, कर्म नी बांची केन ।।
(जन्मपत्री तो हम पढ़ सकते है परंतु ईश्वर द्वारा क़िस्मत में क्या लिखा है ये कोई नहीं पढ़ पाया)

।। जब पेट मा लगी आग, तब क्या चेन्दु साग ।।

(जब भूख लगी हो तो साधारण सा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।)

।। अटकी अटकी मारी फाली, कर्म पर दुई नाली ।।

(कई बार अत्यंत कठिन परिश्रम करने के पश्चात भी हमें उतना ही प्राप्त होता है जितना भाग्य में लिखा होता है।)

।। ना कर बाबा कथा, अपडा बेव्य बाबा ते करलता।।

(भले पूजा कथा ना करे परंतु मात पिता की सेवा व देखभाल अवश्य करे)

।। अकुला का डेरा दूँई पथा दाली, अकुला सय उठी भभरताली ।।

(छोटी मानसिकता के व्यक्तियों को यदि बड़े अधिकार दे दिए जाए तो व उन अधिकारो का ग़लत इस्तेमाल करने लगता है।)

।। अपडा पारा लेगी आग, बिराडा पारा दिली जाग ।

(जब तक मनुष्य स्वयं कार्यशिल होता है तब तक वह अपने काम स्वयं करता है परंतु जब व वृद्ध हो जाता है तब उसे अपने कार्यों के लिए भी दूसरो पर आश्रित होना पड़ता है।)

।। धरियु ढकायू इखी छुटी जालु, हाथ कु दिनीउ कुछ काम आलु ।।

(जमा धन संपती मृत्यु पश्चात यही छूट जानी है परंतु किया गया दान पुण्य हमेशा याद किया जाता है।)

।। छोटा ना दे होणी खाणी, बड़ा कय ना बीचे लोण पाणी ।।

(छोटी मानसिकता के व्यक्ति ज़रा सी सफलता मिलने पर इतराने लगते है वही अच्छे व सभ्य मानसिकता के व्यक्ति अपने बड़पन्न का कभी बखान नहीं करते।)

।। बुजुर्गों की बात और आवला कु सवाद बाद मा पता चल्दु ।।

(बुजुर्गों की बात का और आवला के स्वाद का बाद मे ही पता चलता है।)